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किसीने देखा हो तो रुप, रंग, स्वरुप का वर्णन तो करता ? शास्त्रों में लिखा तो होता । परन्तु कहीं भी ऐसा उल्लेक नहीं मिलता - अतः क्या समझाजाए ?
सर्व व्यापकता कैसे संभव हो सकती है ?
दूसरी ओर ईश्वर को ऐसा दृश्य अथवा अदृश्य शरीरधारी सशरीरी मानने पर ईश्वर की सर्वव्यापकता टिक सकेगी या नहीं टिक सकेगी ? क्यों कि कोई भी शरीरदारी सर्वव्यापी नहीं बन सकता। शरीर सीमित-परिमित मान-उनन्मादादि परिमाण वाला होता है, अतः चाहे जिस गतिया जाति का शरीर स्वीकार करो उसे सीमित-परिमित ही मानना पड़ेगा । अतः शरीरधारी ईश्वर शरीर से तो सर्वविश्वव्यापी बन ही नहीं सकता।
तब फिर ईश्वर का शरीर कैसा माने ? सूक्ष्म या स्थूल ? कार्मण शरीर या तेजस शरीर ? पौद्गलिक या अपौदगल्कि ? दैविक या मानवीय ? दृश्य या अदृस्य ? ऐसे अनेक प्रश्न उपस्थित होंगे ? न्याय वैशेषिक वादी क्या उत्तर दे सकेंगे ? यदि सूक्ष्म शरीर कहते हो तो वह इतने विशाल अनंत संसारं की उत्पत्ति कैसे कर सकता है ? अतः स्थूल शरीर मानना पड़े ? स्थूल मानते हैं तो कितना स्थूल माने ? माप-परिमाण कहीं भी उपलब्ध नहीं, फिर स्थूल शरीर अदृस्य कैसे हो सकता है । यह तो दृश्य ही होता है . तो क्या ईश्वर के दृश्य - स्थूल शरीर का दर्शन आज तक किसी ने किया है ? यदि भूतकाल में किसी ने भी किया होता, तब तो वह उसका वर्णन अवश्य करता ? रूप - रंगादि का वर्णन करता, परन्तु ऐसा वर्णन मिलने के कारण - यह दृश्य स्थूल शरीर था - इस बात को मानने का कोई आधार ही नहीं मिलता ।
- तब ईश्वर का दर्शन क्यों नहीं होता ? वह क्यों नहीं दीखता ? इसमें कारण ईश्वर का अशरीरी होना हैं जिससे हमें ईश्वर द्दष्टिगोचर नहीं होता । तो क्या हमारी इन्द्रियों की शक्तिक्षीण है । दूसरी ओर यदि ईश्वर को अशरीरी ही मान लेते हैं तो मुक्तात्माएँ, सिद्धात्माएँ ही जगत में एक मात्र अशरीरी हैं और वे अशरीरी होने के कारण कोई भी सृष्टि निर्माण का कार्य आदि नहीं करते । अतः ऐसा नियम ही नहीं बन सकता कि जो जो अशरीरी हैं वे सभी कर्ता हैं - नहीं यह
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