SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामर्थ्य दोनों ही धर्मो की सत्ता सिद्ध हो जाएगी । सृष्टि निर्माणादि शुभ कार्य करने का सामर्थ ईश्वर में है पर अशुभ पापादि कार्य करने का सामर्थ ईश्वरमें नहीं है क्यों कि ऐसे कार्य ईश्वर अन्य सामान्य जीवों के पास करवाता हैं | इस. प्रकार असामर्थ धर्म भी ईश्वर में ही सिद्ध होगा । इस प्रकार ईश्वर परस्पर विरूद्ध उभय धर्मवान् धर्मी बना और जगत् में अशुभ-पापादि प्रवृत्ति अधिक चलती है उसके कर्ता सामान्य जीव हुए - क्यों ? पर तब तो जीवों में ही कर्तृत्वशक्ति आ जाएगी . ईश्वर काल विशेष के लिये अकर्ता सिद्ध हो जाएगा, क्यों कि सृष्टि का निर्माण कार्य तो निश्चित् काल में ही हो जाता है । इच्छा और काल : निर्माण का कुल काल कितना है ? कितने वर्षों या महिनों यां दिनों का है? यह तो हमें पता नहीं है और वेदों में भी नहीं लिखा है कि ईश्वर को सृष्टि रचना में इतने वर्ष लग गए या इतने महीने या इतने दिन लग गए । ऐसा उल्लेख किसी भी वेद-वेदांत, स्मृति-पुराणादि में कहीं भी नहीं मिलता है । कहाँ से मिले ? ईश्वर ने शरीर धारण करके किन्हीं पदार्थों के योग-संयोग से सृष्टि बनाई हो तो काल लगे न ? परन्तु ईश्वर ने तो इच्छा मात्र में ही सृष्टि बनाई है । एक संकल्प किया और सृष्टि बन गई, फिर काल कहाँ लगा ? फिर भी काल सूक्ष्म है अतः कुछ काल तो लगा ही होगा न ? सृष्टि होने में कितना काल लगा । इसके उत्तर में कहते हैं कि जितना काल ईश्वर के इच्छा करने में लगा-संकल्प करने में कितना समय? मात्र एक सेकंड.का ही तो काल लगता है। कदाचित ईश्वर जैसे सामर्थबान को तो एक सेकंड भी पूरी न लगे, क्यों कि वह तो सर्व शक्ति सम्पन्न समर्थ है, फिर तो प्रश्न ही कहाँ रहा ? और वह भी ठीक ही है .. एकोऽहं बहुस्यां प्रजायेय' मैं एक हूँ और बहुरूप में होउं प्रजा की उत्पत्ति करूँ - इतना एक वाक्य शब्दोच्चारपूर्वक बोलना हो तो २ सेकण्ड का समय भी लगे, परन्तु इच्छा में तो बोलने का होता ही कहाँ है ? इसमें तो मनोगत संकल्प मात्र ही तो करता है, तब फिर क्या इतनी इच्छा करने में जितना समय लगा उतने ही समय में क्या सृष्टि हो गई ? इच्छा तो एक वाक्य तक ही सीमित है ३-४ शब्दों तक परिमित हैं, परन्तु सृष्टि पृथ्वी, पर्वत, समुद्र, नदी, अनंत आकाश, हवा, पानी आदि - अनंत पदार्थों की है, अनंत पदार्थो से भरी पड़ी है, अत्यन्त विशाल अंतविहीन यह सृष्टि है, तो क्या इतना विशाल सृष्टि ईश्वर की इच्छा मात्र में एक सेकंड में निर्मित हो 246
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy