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भिन्न भिन्न तीन उपमाएँ दी हैं । जैसे तिल में सर्वत्र तेल व्याप्त है वैसे ही, कमल के पुष्प में जिस प्रकार मकरंद व्याप्त है, उसी तरह और इनमें भी यदि कोई न्यूनता हो तो अंतिम उपमा ऐसी दे दी है कि कुछ भी शेष ही न रहे और वह उपमा यह है कि जिस प्रकार चौदह राजलोक के क्षेत्र में पंचास्तिकाय पदार्थ सर्व प्रदेशों में समग्र क्षेत्र में व्याप्त हैं, उसी प्रकार नवकार महामंत्र चौदह पूर्वों और सर्वागमों में व्याप्त हैं । इस प्रकार जैन धर्म में नवकार महामंत्र को नवनीत की तरह सारभूत माना गया हैं ।
पंचास्तिकाय युक्त समस्त लॉक
जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय
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धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय
आकाशास्ति काय (खाली जग्या)
नवकार की ज्ञान स्वरूप सिद्धि :
छाछ बिलोयी जाती है, पानी नहीं । पानी बिलोने से मक्खन नहीं निकलता, मक्खन तो छाछ को ही बिलोने पर निकलता है । इसी प्रकार नवकार महामंत्र
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