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किसके मंथन में से निकला हैं ? मंत्रशास्त्र के बिलोने में से नहीं, बल्कि आगम
और पूर्व-शास्त्रों के बिलोने का यह फल हैं । आगम और पूर्व तो सर्वज्ञ केवलज्ञानी भगवंतों की वाणी हैं - सीधा उपदेश है और नवकार इसका सारभूत नवनीत हैं - निष्कर्ष हैं । आगम तथा पूर्व श्रुतज्ञान स्वरुप हैं, पाँच ज्ञानों में श्रुतज्ञान का भी अपना निजी महत्वपूर्ण स्थान हैं । उस श्रुतज्ञान के विशालकाय ग्रंथ पूर्व और आगम स्वरुप में हैं, तथा उनके निष्कर्ष के रुप में यह नवकार महामंत्र हैं, अतः सर्व प्रथम नवकार महामंत्र की ज्ञानात्मकता और उसमें भी श्रुतज्ञानात्मकता सिद्ध होती हैं । अतः इतना तो निर्विवाद रुप से कहा जा सकता है कि नवकार महामंत्र को मात्र मंत्रशास्त्र का ही सार नहीं कहा गया है, जबकि नवकार मंत्र स्वरुप में है । उसका स्वरुप मंत्रात्मक होते हुए भी नवकार को मंत्रशास्त्र का सार कहकर उसे श्रेष्ठ मंत्र का पद दिया गया है । इतना ही नहीं, बल्कि उससे भी आगे बढ़कर नवकार महामंत्र को श्रुतज्ञानके चौदह पूर्वो का सार कहकर ज्ञान का पद भी दिया गया है, जो कि बहुत ही उँचा द्दष्टिकोण हैं । इसी में नवकार की महत्ता, श्रेष्ठता, सर्वोच्चता रक्षित हुई हैं ।
' अन्यथा... सर्वमंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र का स्थान श्री नवकार को देते हुए भी इसे मंत्रशास्त्र का सार नहीं कहा । हाँ, मंत्रों में श्रेष्ठ मंत्र और मंत्रो में महामंत्र की बात की, परन्तु मंत्रों का अथवा मंत्रशास्त्र का इसे सार न कहकर चौदह पूर्वो का सार कहा, जिससे एक विशेषता तो यह सिद्ध होती है कि नवकार मात्र मंत्र स्वरुप में ही नहीं परन्तु ज्ञानस्वरुप भी है । नवकार की विशिष्टता इसकी ज्ञानस्वरुपता में हैं, इसकी महत्ता इसके ज्ञान स्वरुप में है । मात्र मंत्र स्वरुपता में ही नहीं - कदाचित् यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि अधिकांश मंत्रों में ज्ञानस्वरुपता नहीं होती । अनेक मंत्र मात्र मंत्रात्मक होते हैं, उनका मंत्रस्थान अथवा मंत्रस्वरुप ही उपयोगी होता है । सैंकड़ों मंत्र ऐसे भी होते हैं जिनका कोई अर्थ ही हम नहीं जानते, परन्तु यदि उनकी साधना की जाए, तो वे इष्ट सिद्धि अवश्य देते हैं और वह इष्ट सिद्धि अर्थात् रोगनिवृत्ति, दुःखनिवारण, कार्यसिद्धि अथवा मनोरथ सिद्धि स्वरुप होती हैं, जब कि नवकार को यद्यपि मंत्र कहा गया हैं तथापि इसका कार्य मात्र यहीं तक सीमित नहीं है । नवकार मात्र मंत्र स्वरुपमें ही नहीं है । इसे मात्र मंत्रात्मक ही न मानें, बल्कि इसे ज्ञान-स्वरुप में मानना अति आवश्यक हैं । नवकार प्राथमिक रुप से ज्ञानात्मक - ज्ञानस्वरुप में हैं, इसका मंत्र स्वरुप गौण