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________________ वे देवता मनुष्य आदि थे ही नहीं तब उनकी सहायक शक्ति का उपयोग करने का तो प्रश्न ही कहाँ रहा ? ___मांत्रिक शक्ति का विचार करे तो ख्याल आएगा कि मंत्र भी संबंधित देव . की शक्ति से अधिष्ठित होते हैं । मंत्रो के देवता होते हैं । मंत्र स्मरण के आधार पर वे अधिष्ठित देव ही इच्छित कार्य सम्पादित करते हैं, परन्तु जब देवताओं को अभी तक ईश्वर ने बनाया ही नहीं था, देव-सृष्टि का निर्माण ही नहीं किया था तो देववाची मंत्र कहां थे ? और यदि कहें कि मंत्र वेद में थे तो वे मंत्र देवाधिष्ठित न थे, क्यों कि जब तक देवताओं को ही ईश्वर ने बनाया न था तो देवता मंत्र स्मरणपूर्वक कहाँ से कार्य करने लगे ? जो ईश्वर समर्थ है, वही जब देवताओं को बनाता है तब उसे देवताओं की सहायता लेने की आवश्यकता ही कहाँ पड़ी ? देवताओं की सहायता लेकर फिर दूसरी सृष्टि बनाता है - ऐसा यदि मानें तो ईश्वर की क्षमता में - उसकी सामर्थ्यता में न्यूनता आएगी । क्या ईश्वर की शक्ति कम थी जो उसे दैविक शक्ति की सहायता लेनी पड़ी ? . रामायण में वर्णन है कि राम-रावण युद्ध में रावण जैसे को मारने के लिये भगवान जैसे राम को देवताओं की सहायता लेनी पड़ी थी । कई देवतागण राम की सहायतार्थ आए थे । भले ही वानर रूप लिया हो, वानर के रूप में भी साथ रहकर राम की ओर से लड़े हों परन्तु इतने अधिक देवताओं ने एकत्रित होकर रावण को पराजित किया था - यह बात दीपक के समान स्पष्ट है । मानो कदाचित् देवतागण राम की सहायता करने न आए होते तो भगवान जैसे भगवान राम का क्या होता ? और फिर यदि भगवान पराजित हुए होते तो रावण की शक्ति अधिक मानी जाती - जगत वर्षों तक क्या कहता ? दूसरी और ये भी प्रश्न खड़े होते हैं कि भगवान ईश्वर की ही यह सब लीला है - ईश्वर की इच्छा से ही यह सब होता है, ईश्वर की इच्छा के विपरीत कुछ भी नहीं हो सकता, ईश्वर की इच्छा न हो तो एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, तो क्या सीतापहरण की घटना भी ईश्वरेच्छापूर्वक ही हुई थी या ईश्वरेच्छा के विरुद्ध थी? दूसरी ओर जगत् कर्तृत्ववादी धर्मों में एक ही ईश्वर - ब्रह्मा को ही आत्मा माना गया है । उनके मतानुसार एक ही आत्मा है । इसीलिये वे एकात्मवादी है । उनके अनुसार अन्य सभी प्राणिओं में कोई आत्मा नहीं है । अन्य सभी प्राणिओं में उसी ब्रह्माजी का प्रतिबिम्ब पडता है ? जैसे हजारों थालियाँ अथवा दर्पण नीचे रखे हों 237
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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