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गति बच्चों को प्रसन्न कर देती है और अंत में जादूगर लोगों के पास पैसे एकत्रित करके चला जाता है।
- क्या ईश्वर भी ऐसा ही करता है या फिर कुम्हार की तरह करता है ? पानी - मिट्टी आदि सत् पदार्थ हैं । उन में से कुम्हार घटादि सत् पदार्थ ही बनाता है
और यदि ईश्वर भी सत् में से सत् पदार्थ बनाता तब फिर जिसमें से यह बनाता है वे मूलतः सत पदार्थ कौन से हैं जिनमें से उसने अन्य पदार्थ बनाए ? आकाश किस में से बनाया । पृथ्वी-पानी-अग्नि वायु-आकाशादि पदार्थ किस में से तथा किसकी सहायता से बनाए ? इसका कुछ भी पता नहीं, और मानो कि हो, उन पदार्थों को मान भी लें, तब भी किसे मानना ? वेद को मानें क्या ? वेदादि में भी कहीं नहीं लिखा कि इनके संयोजन से अथवा सहायता से ईश्वर ने आकाश बनाया । कहीं भी इस संबंध में उल्लेख नहीं मिलता ।
अथवा तो फिर क्या असत् में से सत् का निर्माण किया ? क्या शून्य में से सृष्टि का सर्जन किया ? कुछ भी न था और उसमें से क्या यह सारी सृष्टि बनाई है ? तो यह बात कैसे माने ? तब तो कुम्हार भी सोने-चाँदी, हीरे, रत्नादि के घड़ों का सृजन कर सकेगा ?
सर्जन शक्ति से अथवा इच्छा मात्र से ?
ईश्वर को सर्व शक्तिमान बताया है तो वह सर्व शक्तिमान ईश्वर अपनी शक्ति का उपयोग करके सृष्टि की रचना करता है अथवा इच्छा मात्र से ? इच्छा और शक्ति दोनों में बड़ा अन्तर है । इच्छा से तो सृष्टि रचना असंभव लगती है, परन्तु शक्ति से सृष्टि-रचना शक्य-संभव लगती है । बात समज में आने जैसी हैं, परन्तु प्रश्न यह होता है कि कौन सी शक्ति, कैसी शक्ति ईश्वर किस प्रकार उपयोग में लेता है और किस प्रकार सृष्टि बनाता है ? मानसिक शक्ति, संकल्प शक्ति शारीरिक शक्ति या जादूई शक्ति, यांत्रिक शक्ति, तांत्रिक शक्ति या मांत्रिकशक्ति या फिर सहायक देव शक्ति आदि नाना प्रकार की शक्तियाँ है - इनमें से ईश्वर किस शक्ति से सृष्टि की रचना करता है ? क्या सृष्टि की रचना में यांत्रिक, तांत्रिक या मांत्रिक शक्ति का उपयोग होता है ? नहीं, - उस समय जब कुछ भी न था, तब यंत्र - तंत्र भी कहाँ थे ? यंत्र-तंत्र हो तो यांत्रिक या तांत्रिक शक्तियाँ होगी-अन्यथा कहाँ से होगी ? इसी प्रकार सहायक देव और मानव सृष्टि के आरंभ काल में एक भी नहीं थे क्यों कि जब तक स्वयं ईश्वर ने उनकी रचना ही नहीं की थी तब तक
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