SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 260
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और एक सूर्य का हजारों में समान प्रतिबिम्ब पड़ता है और हजारों सूर्य दिखाई पड़ते हैं, उसी प्रकार एक ही ईश्वर एक ही ब्रह्मा की एक ही आत्मा का प्रतिबिंब जगत् के सभी जीवों में पड़ता है । बस, इसीलिये सम्पूर्ण जगत् में मात्र एक ही आत्मा हैं, दूसरी कोई नहीं । ___ "जीवो ममैवांशो नाऽपर": जीव मेरा ही अंशमात्र है, भिन्न नहीं - इस प्रकार जीव को ईश्वर का ही अंश माना है, उसे भिन्न इकाई नहीं माना । अर्थात् सूर्य के प्रतिबिंब की तरह हजारों लाखों प्राणिओं में ईश्वर का प्रतिबिंब पड़ता है, कोई भिन्न भिन्न आत्माएँ नहीं है, मात्र आभास होता है । यदि ऐसा सिद्धान्त है तब फिर राम-रावण के भेद का प्रश्न ही कहां उपस्थित होता है ? अद्वैतवादिओं की मान्यतानुसार तो यह सब कुछ होना ही न चाहिये, परन्तु भगवान राम रावण के साथ युद्ध करने गए, लड़े और जीते, रावण को मारा - ये सभी बातें जग विख्यात हैं । इनका शास्त्र सूत्र - सिद्धान्त के साथ मेल कैसे बिठाया जाए ? तो फिर भगवान राम ने किसका संहार किया ? दूसरी ओर इस सीतापहरण की घटना को भी ईश्वरेच्छा का सुंदर कार्य ही माने या ईश्वरेच्छा से परे काम मानें ? "इतो व्याघ्रः ततो तटी” एक ओर सिंह और दूसरी ओर नदी जैसी हमारी स्थिति हो जाती है । क्या करें किधर जाएँ ? इधर जाते हैं तो सिंह खा जाता है और उधर जाते हैं तो नदीमें डूब जाने की स्थिति है । कठिनाई दोनों ओर है । ईश्वरेच्छानुसार ही सीतापहरण का कार्य मानें तो ऐसा काम कैसे माने ? भगवान राम जो स्वंय ईश्वर हैं, उन्हीं की पत्नि सीता ला अपहरण भगवान-ईश्वर राम की ही इच्छानुसार हुआ-क्या हमें यही मानना पड़ेगा? और फिर राम-रावण के मध्य जो युद्ध हुआ क्या वह भी ईश्वरेच्छा के अनुकूल ही माना जाए ? इतना ही नहीं बल्कि रावण मरा अर्थात् ईश्वर का स्वंय का ही अंशजीव मर गया क्या ऐसा माने ? हजारों प्रश्न खड़े होते हैं तब क्या मानें ? किसे सत्य समझें ? क्या इसे भी ईश्वर की लीला का ऐश्वर्य प्रदान कर ढाल के नीचे ढक दें? - यदि जीव इस ईश्वर का ही अंश है, भिन्न स्वतंत्र इकाई नहीं है तो क्या ईश्वर स्वयं ही अपने अंश को समाप्त करता है ? और अभिन्न रूप से रहने वाले इस अंश को समाप्त करता है ? और अभिन्न रूप से रहने वाले इस अंश को मारने पर क्या मूल ईश्वर भी जीवित रहता है या मर जाता है ? भगवान राम देह छोड़कर चले गए तो जगत के अन्य सभी जीव कैसे जीवित रहे ? वे भी सभी मर 238
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy