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________________ मिटी, पानी, दंड, चक्र आदि उपकरण लेने पड़ते हैं ? मिट्टी को छानना पड़ता है, फिर पानी में भिगोकर पिंड बनाना पड़ता है और फिर उस पिंड को चाक (चक्र) पर घुमाते घुमाते आकार देना पड़ता है, फिर पुनः पुनः पानी का उपयोग करना पड़ता है और चक्र को घुमाने के लिये बार बार दंड का उपयोग भी करना पड़ता है । तदुपरान्त उस कच्ची मिट्टी के घड़े को धूप में सुखाना पड़ता है और अंत में अग्नि के संयोग से उसे तपाकर परिपक्व करना पड़ता है, तब कहीं घड़े का निर्माण होता है । यह प्रक्रिया तो सारा विश्व जानता है परन्तु मन में इच्छा करने मात्र से पलभर में निर्माण कैसे हो जाता है ? क्या कोई जादू है, कोई चमत्कार है या दैवि शक्ति है ? __इच्छा मन में होती है, परन्तु तदनुरुप शरीर से कार्य तो करना पडे या नहीं? कुम्हार के मन में घड़ा बनाने की इच्छा तो हुई, इच्छा करने मात्र से घड़ा बन जाता हो तो चक्र, दंड, मिट्टी, पानी आदि पदार्थ लेकर शरीर से उसकी रचना करने बैठने की आवश्यकता ही न रहे ! परन्तु इच्छा के विषयों को क्रियान्वित करने के लिये शरीर से पुद्गल पदार्थों को लेकर मिट्टी के घड़े की तरह पदार्थ बनाने पर शरीर बनता है । ईश्वर की सृष्टि रचना के विषय में वेद-वेदांत पुराणादि ग्रंथों में इच्छा के विषय में लिखते हुए बताते हैं कि 'संकल्पमात्रमिदं जगत्' संकल्प मात्रेण संजाता इमा सृष्टि । यह सारी सृष्टि ईश्वर की संकल्प शक्ति से उत्पन्न हुई है । ईश्वर ने मात्र इच्छा रूप संकल्प किया और क्षण भर में सारी सृष्टि बनती गई । इस्लाम धर्म में कुरानादि में भी ऐसा ही कहा गया है कि जिस प्रकार जादूगर पल भर में अथवा शब्दोच्चार काल मात्र में वस्तुओं का निर्माण कर डालता है और प्रदर्शन करता है, उसी प्रकार अल्लाह ने यह सारा विश्व जादूगर की भाँति एक शब्दोच्चार करके पल भर में बना दिया है । यद्यपि यह बात गले नहीं उतरती फिर भी क्षण भर के लिये मान लें तो अपने मन में दूसरे प्रश्न उपस्थित होंगे । क्या जादूगर जो कुछ भी करता है वह वास्तविक ही होता है ? अथवा वास्तव में करता है या पूर्व में जो बनाया हुआ है वही बताता है ? अथवा बनाता है या मात्र हाथ चालाकी या नजर कैद की तरह दिखाता है । जादूगर की लीला को सत्य मानने के लिये जगत के चतुर लोग भी सहमत नहीं होते हैं और बात भी सही है - स्वयं जादूगर ही कहते हैं कि हम तो मात्र हाथ की चालाकी करते रहते हैं, अर्धदृष्टि बचाकर ध्यान विकेन्द्रित कर 233
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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