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________________ 1 करना तो शरीर का धर्म है । यह विभाजन निश्चित् ही है । इसमें परिवर्तन संभव नहीं है । शरीर स्थूल है अतः वह सूक्ष्म मन की गति से कार्य नहीं कर सकता । अतः काल तो बहुत लम्बा लगेगा । अब इतने लंबे काल तक इच्छा को पूर्ण करने का प्रयत्न होगा तो उसमें कितने दोष लगेंगे ? क्योंकि कार्यक्षेत्र में कितने जीवों की हिंसा होगी ? कितनों को दुःखी किया जाएगा । कितने झूठ-चोरी के पाप होंगे ? क्या इसमें पाप का हिसाब रह पाएगा । नहीं, इच्छा करने में तो एक प्रतिशत पाप लगेगा, परन्तु इच्छा की पूर्ति में हजार प्रतिशत पाप - दोष लगेंगे, अतः दोनों में से पहले किसे नियंत्रित किया जाए ? क्या इच्छा करना हम बंद कर सकेंगे ? मन पर इतना नियंत्रण हम कहाँ ला पाए हैं कि इच्छा पर नियंत्रण कर सकें । इच्छा करनी ही नहीं, परन्तु अपनी बातं तो कहां करनी ? ब्रह्माजी भी अपनी सृष्टि निर्माण करने की इच्छा को न रोक सके तो जनसामान्य की क्या बिसात ? अतः इच्छाएँ तो होती ही रहेगी । मात्र हमें यह दृढ निश्चय करना है। कि उत्पन्न इच्छा के अनुसार कार्य करने की आवश्यकता नहीं है । इच्छा भले ही हो जाए परन्तु उसे पूर्ण करने के लिये जूझने की आवश्यकता नहीं है । इच्छा का पाप तो मन में ही रहेगा । उसे मात्र इच्छा करने वाला स्वयं ही जानेगा, जब कि इच्छा की पूर्ति हेतु - इच्छानुसार कार्य करने के लिये परिश्रम करने वाले का पाप तो सम्पूर्ण विश्व जानेगा । काया द्वारा कृत पाप जगत देख सकता है, सकता है, परन्तु मन से इच्छाओं के रूप में किया जाने वाला पाप, विचारों के रूप में बद्ध पाप तो मात्र महाज्ञानीजनो के सिवाय कौन जान सकता है ? ऐसे महाज्ञानी तो मनः पर्यवज्ञानी या केवलज्ञानी ही होते है । अतः ऐसे महाज्ञानियों ने ही धर्मोपदेश देते समय बताया है कि.... इच्छानुसार तुरन्त आचरण करने की आवश्यकता नहीं है; इच्छानुसार तुरन्त ही प्रवृत्ति करने की आवश्यकता नहीं है । पहले इच्छा का निर्णय करो । वह योग्य, उचित और अच्छी है अथवा अयोग्य, अनुचित और बुरी है, संभव है या असंभव है ? तत्पश्चात् प्रवृत्ति करो - अन्यथा जगत कहेगा कि कार्य बिना विचारे किया गया है, नासमझपूर्वक किया गया है । जान क्या इच्छा मात्र से कार्य हो जाता है ? जगत का नियम या व्यवहार क्या है ? क्या कोई भी कार्य इच्छा करने मात्र से हो जाता है ? या कार्य करने से कार्य होता है । उदाहरणार्थ - कुम्हार मन में घड़े बनाने की इच्छा करे तो क्या इच्छा मात्र से घड़ा हो जाता है ? या कुम्हार को 232
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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