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मनवाले समनस्क कहलाते हैं । जीवात्मा विचार करने के लिये मनोवर्गणा के पुद्गल परमाणुओं का समूह ग्रहण करके उसे मनरूप में परिणत कर फिर विचार करता है और उन विचारों में इच्छा तत्त्व रहा हुआ है । वे इच्छा राग या द्वेष से युक्त होती हैं । मन से इच्छा या इच्छा से मन ? क्या मन के बिना इच्छा होती है या इच्छा के बिना मन रह पाता है ? मन के लिये इच्छा की आवश्यकता रहती है अथवा इच्छा के लिये मन की आवश्यकता रहती है । उत्तर कुछ भी हो पर एक बात तो स्पष्ट ही है कि इच्छा का घर मन है । मन जनक है । तब फिर मन खराब ? या इच्छा खराब ? मन अच्छा या इच्छा अच्छी ? नहीं अच्छे बुरे का अर्थ भी अन्योन्याश्रित है ।
मन तो जड़ तत्त्व है । तलवार अच्छी या बुरी ? नहीं, तलवार के रुप में वस्तु न अच्छी है न बुरी है । परन्तु उसका उपयोग अच्छा है या बुरा ? क्यों कि वस्तु जड़ है, हम उसका उपयोग कैसा करते हैं - अच्छा या बुरा ? उसी पर अच्छे - बुरे का आधार है ।
इस प्रकार मन भी जड़ है अतः मन अच्छा या बुरा ? नहीं, मन न अच्छा है न बुरा, परन्तु हम अपने मन का उपयोग कैसा करते है उस पर आधार रहता है। यदि मन का उपयोग अच्छे विचारों, उत्तम इच्छाओं में करते हैं तो मन श्रेष्ठ है और यदि उसी मन का उपयोग कुविचारों, बुरी इच्छाओ के लिये करते हैं तो वह निकृष्टतम है । विचारो पर हम नियंत्रण कर नहीं पाते और दोष मन को देते बुरी बात हैं ।
पाप किसमें ? इच्छा करने में अथवा इच्छापूर्ण करने के प्रयत्न में ? यह प्रश्न भी विचित्र हैं । पाप या दोष किसमें लगता है ? इच्छा करने में या कृतइच्छा की पूर्ति हेतु श्रम में ? इच्छा होनेमें तो देर नहीं लगती । एक सेकंड़ समय में मानवअगणित इच्छाएं कर बैठता है । मैं सम्पूर्ण विश्व का प्रमुख बन जाऊँ, यह इच्छा तो हो गई । इसमें कितनी सेकंड लगी ? मन त्वरित गति वाला है, अतः आँख के पलक झपकने मात्र में वह इच्छा तो कर डालता है, परन्तु उस इच्छा को पूर्ण करने में कितना समय लगेगा ? सम्पूर्ण विश्व का राष्ट्रपति बनने में तो सम्भवतः सारा जीवन ही बीत जाएगा इसमें समय का कोई हिसाब नहीं, क्यों कि जितना विशाल कार्यक्षेत्र उतना ही अधिक समय लगेगा ।
कारण यह है कि मन तो इच्छा करता है, मन कार्य नहीं करता । कार्य
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