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________________ नजर कैद की स्थिति उत्पन्न करके अपनी क्रीडा दिखाते हैं । वास्तव में हम कुछ भी बनाते नहीं है । यदि बनाना आता होता तब तो हम कागज के नोट अथवा सिक्के तो क्या बल्कि नित्य स्वर्ण-मुद्राएँ और हीरे, मोती, रत्न ही न बनाते । फिर हम अपने जादू से भोजन भी बना लेते । फिर तो हमें अपनी उदरपूर्ति हेतु ये खेल या यह धंदा करने की भी आवश्यकता न रहती । अतः यह तो एक प्रकार का लोक रंजन - मनोरंजन है । इसमें वास्तविकता नहीं होती । वास्तविकता इतनी ही है कि हम कुछ भी बनाते नहीं है । इस निर्णय पर ईश्वर को भी क्या जादूगर कहें । क्या जादूगर की भाँति ही ईश्वर भी सृष्टि रचना करता है यदि हाँ में उत्तर स्वीकार करते हैं तो क्या यह सम्पूर्ण जगत सत् रूप में है या असत् रूप में है ? भ्रम रूप हैं अथवा कल्पना मात्र है ? संशयात्मक संदेहास्पद है या स्वप्नवत् है या फिर वह वास्तविक है या कुछ भी नहीं है ? जिस प्रकार जादूगर कुछ भी नहीं बनाता, मात्र बनी हुई वस्तुओं को. ही दिखाने में हाथ की चालाकी करता हैं, उसी प्रकार क्या ईश्वर भी स्वंय कुछ भी नहीं बनाता, मात्र जगत के जीवों को संसार का स्वरूप दिखाने के लिये क्या मात्र हाथ की चालाकी ही करता हैं ? क्या यह पक्ष स्वीकार करें ? पल भर के लिये मान भी लें तो फिर सृष्टि के आरंभ काल में जब मानव का अस्तित्व ही न था तब ईश्वर ने सर्व प्रथम पंचमहाभूत की भौतिक सृष्टि की रचना की, तब सामने देखने वाला कौन था ? जिसे दिखाने के लिये अथवा मनोरंजन करने के लिये ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है । ईश्वर को किसका मनोरंजन करवाना था? सामने जब कोई था ही नहीं तो फिर नजरकैद किसे करना था ? सृष्टि सत् में से या असत् में से ? किस में से बनी हैं ? चलो, कोई भी देखने वाला न था फिर भी मान लो कि ईश्वर ने स्वमनोरंजन हेतु सृष्टि की रचना की है... तो फिर ईश्वर ने क्या क्या बनाया और किसमें से बनाया ? क्या असत् में से सत् बनाया ? या सत् में से असत् बनाया ? कैसे बनाया ? इस प्रकार चार भेद होते हैं । इन चारों में से ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि किस में से बनाई है ? जैसे एक कुम्हार मिट्टी पानी लेकर घड़ा बनाता हैं, भले ही उस कुम्हार की चाहे जितनी इच्छा अथवा चाहे जितना ज्ञान हो पर यदि मिट्टी, पानी, चक्र, दंड आदि पदार्थ न हो तो कारण होते हुए भी कुम्हार घड़ा कैसे बना सकता है ? ऐसा करना उसके लिये संभव ही नहीं है । निमित्त भी
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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