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________________ भगवान महावीर स्वामी के जीवन चरित्र का अवलोकन करो अथवा किसी भी अन्य तीर्थंकर भगवंत के जीवन चरित्र को देखें । उन्होंने भी अपनी भव परम्परा के जन्मों में जब जब जैसे जैसे पाप किये हैं तब तब उन्हें भी पाप के कटु फल भोगने ही पड़े हैं । महावीर स्वामी ने अपने स्वयं के पूर्व भव में किसी के कान में तपाया हुए गर्म सीसा डलवाने पाप कर्म किया था तो उस पापकर्म के फलित होने पर उनके कान में खीले ठोंके गए थे । ‘कृतं कर्म अवश्यमेव भोक्तव्यम्' अर्थात् किये हुए कर्म अवश्य भोगने ही पड़ते हैं - यह सिद्धान्त मात्र सामान्य जीवों के लिये ही नहीं, बल्कि भगवान के लिये भी इतना ही लागू होता हैं । महावीर को तो भूतकाल के भवों के पापों के फल भोगने पड़े थे । तीसरे मरिचि के भव के नीच गोत्र कर्म के विपाक में उन्हें ८२ दिन तक देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में रहना पड़ा था । १८ वे भव में रानी के साथ वैमनस्य में हुई भूलों के भोग बनने से उन्हें अपने २७ वे भव में कटपूतना व्यंतरी की ओर से शीत उपसर्ग सहन करना पड़ा था । इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वयं द्वारा किये गए पाप कर्मों के फल स्वयं को ही भोगने पड़े थे । . इसी प्रकार सभी तीर्थंकर भगवंतो के जीवन में ऐसा ही वर्णन है । सभी तीर्थकर भगवंतो के भूतकाल के भव माने गए हैं । उनमें किए हुए पापों के फल उन्होने भोगे और वे भी किस प्रकार भोगे यह सब बताया गया है । Holyday अर्थात् पवित्र होने का दिन : ईसाई मत की मान्यता है कि जगत-पिता ईश्वर (God Father)ने ६ दिनों में सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की जो भी पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, आकाश, वनस्पति तथा जीवादि की सृष्टि बनाई और उसे बनाने में ईश्वर को जितने भी अशुभपापकर्म लगे, और इस प्रकार करने से वे जितने अशुद्ध हुए - उतने ही शुद्ध होने के लिये उन्होंने सातवे दिन प्रार्थना की - क्षमायाचना की और पवित्र हुए । इसीलिये सप्ताह के छह दिन सृष्टि रचना के और अंतिम सातवाँ दिन Holyday माना जाता है । हम लोग उस Holyday को Holiday अर्थात् Day of rest from work छुट्टी - अवकाश का दिन गिनते हैं जब कि यह मात्र छुट्टी का दिन नहीं है। अपने लिये ठीक है कि बच्चे स्कूल जाते हैं तो भले ही वे इसे छुट्टी का दिन गिनें परन्तु उस युग में यह दिन Holyday अर्थात् पवित्र-शुद्ध होने का दिन माना गया था । शब्दकोष में भी Holy का अर्थ पवित्र बताया गया है । 219
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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