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में भगवान की हँसी नहीं उड़ाई गई है ? ऐसे भाव से भगवान को नमस्कार किया गया कहलाता है या भगवान को चोर कहकर उन्हें अपमानित किया गया है । प्रारंभ में किसी को चोर कह कर फिर उसे नमस्कार करें तो क्या उचित लगेगा ? क्या हमें स्वयं को भी ऐसा व्यवहार प्रिय लगेगा ? कदापि नहीं । किसी को भी प्रिय नहीं लगेगा तब ईश्वर को कैसे प्रिय लग सकता है ? इस स्तुति के बहाने न्याय दर्शनकार ने अपनी मान्यता और अपने धर्म की मान्यता प्रकट की है, क्यों कि इनके धर्म में ईश्वर को ऐसे अर्थ में ही माना जाता है - इसी स्वरूप में स्वीकार किया है, इसीलिये ऐसी स्तुति की है। ऐसी स्तुति करते समय भगवान को चोर. कहने में इन्हें जरा भी संकोच नहीं हुआ यह एक आश्चर्य है ।
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यहाँ ईश्वर का स्वरूप मानने के लिये इन्हें विशेषण देकर स्पष्टता की है कि 'लीला तांडव पंडित ' - अर्थात् प्रलय काल की विनाशकारी तांडव लीला करने में निपुण पंडित जैसे शंकर भगवान और 'संसार महीरुहस्य बीजाय' अर्थात् संसार रूपीवृक्ष के लिये बीज - कारण रूप जो भगवान हैं उन्हें नमस्कार हो । ईश्वर कैसे होते हैं ? ईश्वर किसे कहा जाए ? इन अर्थों को स्पष्ट करते हुए इन विशेषणों से - सृष्टि के कारण रूप और प्रलय करने वाले ईश्वर को नमस्कार किया है । अर्थात् न्याय दर्शनवाले नैयायिक ईश्वर को सृष्टि का बीज - कारण मानते हैं । जिस प्रकार बीज के बिना वृक्ष का होना असंभव हैं, उसी प्रकार ईश्वर के बिना संसार - सृष्टि की रचना संभव ही नहीं है, और रचना की है अतः नष्ट भी करना ही पड़ेगा । अतः तांडव लीला द्वारा प्रलय करने वाला भी ईश्वर को ही बताया गया है । सृष्टिकर्ता और प्रलय संहार कर्ता दोनों एक ही ईश्वर है, दोनों ही प्रकार से स्वरूप एक ही है - भिन्न भिन्न नहीं है, नाम भेद है पर स्वरूप भेद नहीं है । नैयायिक एकेश्वरवादी हैं । ईश्वर को एक स्वरुप में ही मानते हैं । इनके मतानुसार एक ही ईश्वर भिन्न भिन्न रूपों में पुनः पुनः अवतार लेता है और संसार में लीला करने के लिये बार बार आता रहता है । सृष्टि रचना भी एक लीला है और संहार प्रलय करके सृष्टि को समाप्त करना भी एक लीला है ।
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इस प्रकार एक ही ईश्वर है । वही पुनः पुनः अवतार लेता है ... वही पुनः पुनः सृष्टि का निर्माण व संहार करता हैं ऐसे भगवान को जिन विशेषणों से सम्मानित किया है - नमस्कार किया वह क्या मजाक रूप नहीं लगता ? श्री कृष्ण की स्तुति करते हुए कहते हैं कि सरोवर में स्नान करने के लिये उत्तरी हुई गोपिकाओं - जिन स्त्रियों ने स्नान हेतु अपने सभी वस्त्र उतारकर वृक्ष पर लटका
है
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