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________________ हैं - ऐसा भी मानने वाले हैं । इस प्रकार ईश्वर के सबंध में प्रवर्तित सैंकड़ों भिन्न भिन्न मान्यताओं में से हमें ईश्वर का सच्चा - शुद्ध स्वरूप समझकर फिर आराधना करनी है । स्वरूप निर्णय के बिना हमारी आराधना भी शुद्ध होने वाली नहीं हैं, क्यों कि जैसी मान्यता वैसी ही उपासना - इस नियम के अनुसार पहले मान्यता को सुधारना होगा, फिर उपासना तो स्वतः सुधर जाएगी । उपासना क्रियात्मक है, मान्यता सम्यक्त्व स्वरूप अर्थात् श्रद्धास्वरूप तथा ज्ञान स्वरूप है, ज्ञानात्मक स्वरूप भी होनी ही चाहिये । ईश्वर मात्र उपास्य ही हो इतना ही नहीं, बल्कि ज्ञान गम्य, बुद्धि गम्य तथा तर्क गम्य भी होने चाहियें । ऐसी बुद्धि - शक्ति हमें प्राप्त हुई हो तो फिर हमारे मुख से 'सब ईश्वर एक हैं, सब का मालिक एक है, सब भगवान एक ही है, नाम भिन्न भिन्न हैं ।' ऐसी बुद्धि विहीन, तर्करहित अंध श्रद्धा की बातें नहीं निकलती । अतः यहाँ ईश्वर के विषय में बुद्धि गम्य विचारणा प्रस्तुत करनी है। ईश्वर की स्तुति या मजाक : . . चूडामणि - कृत - विधुर्वलयीकृत - वासुकिः । . भवो भवतु भव्याय लीलाताण्डवपण्डितः ॥१॥ नूतनजलधररुचये गोपवधूटीदुकुलचौराय । तस्मै कृष्णाय नमः संसारमहीरुहस्य बीजाय ॥२॥ अक्षपाद - नैयायिक दर्शन के मूल ग्रंथ - सिद्धान्त मुक्तावली के आरंभ में मंगलाचरण करते हुए भगवान की उपरोक्त स्तुति के इन श्लोको में स्तुति करते हुए लिखते हैं कि - सिर पर शिखा-जटा में चंद्र को धारण करने वाले और सर्प को मोड़कर गले में आभूषण की तरह वलयाकार धारण करने वाले और तांडव लीला करने में निपुण पंडित ऐसे 'भव' अर्थात् शंकर भगवान 'भव्याय भवतु' सबके कल्याण हेतु हो ॥१॥ ___ दूसरी स्तुति में श्री कृष्ण भगवान को नमस्कार करते हुए ग्रंथकर्ता विश्वनाथ भट्ट लिखते हैं कि - वर्षां के समय आकाश में आए हुए श्यामवर्ण के मेघवत् श्याम और गोपवधूटी अर्थात् ग्वालों की वधुओं के वस्त्र चुराने वाले और संसार रूपी वृक्ष के बीज - कारणरुप श्री कृष्ण भगवान को नमस्कार हो ।।२।। न्याय विशारद पंडित विश्वनाथ भट्ट की स्व मान्यता रूप भक्तिभाव से कृत ये दोनों स्तुतियाँ आप बड़े ही ध्यान पूर्वक देखें, अर्थ का विचार करें - क्या इन 211
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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