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________________ उसे स्वीकार करना होगा । आजीवन - ८०-१०० वर्षों तक पूजने, मानने, आराधना करने के पश्चात् यदि पता चले, कि ये तो सच्चे भगवान ही नहीं है, यह तो मिथ्या स्वरुप है, मुझे तो पता ही नही चला था और अज्ञानतावश मैंने इन्हें ईश्वर के रूप में मान लिया, इनकी पूजा कर ली... तो अब क्या हो ? यह तो सोना समझकर पीतल खरीद लाने जैसी बात हुई । २०-२५ वर्ष तक सोना समझ कर रखा, उस पर बड़ी बड़ी आशाओं के हवाई किले बाँधे, आशा रखी कि कष्ट के समय यह सोना आग पर पानी की तरह उपयोगी होगा, पर वास्तव में हुआ यह कि ५० वर्ष तक इस सोने को प्राणवत् सम्हाल कर रखने के पश्चात् अचानक जब आर्थिक स्थिति बिगड़ी तब उसी आपत्ति के समय उस सोने को बेचने गए । बड़ी आशा थी कि यह दो किलो सोना बेचने से इतनी धन राशि प्राप्त होगी कि हम पुनः धनवान हो जाएँगे, परन्तु बाजी उल्टी पड़ी । सोना बेचने गए तभी सामने वाले ने कहा 'देखो - कसौटी पर कस कर देख लो - यह सोना ही कहाँ है ? यह तो पीतल है पीतल। पीतल पर सोने का पानी चढ़ा रखा है जो २४ दिन में ही उतर जाएगा और इधर तुम हो जो पीतल को सोने के भाव से बेचना चाहते हो कहीं हमें ठगने का तो तुम्हारा कुविचार नहीं है ? लगता है तुम लुटेरे हो - छल कपट करने वाले हो। इतना कहने के साथ ही सामने वाले ने पुलिस को दूरभाष द्वारा सूचना देकर बुला लिया और उस दम्पति को पकड़वा दिया । बेचारे निरर्थक कारावास में गए । उनकी आशाओं पर पानी फिर गया । सिर पर हाथ रखकर रोने के सिवाय कोई विकल्प ही न रहा । ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तब क्या समझा जाए ? कदाचित् इस दंपति ने तो सोने से ही हाथ धोये, पर हमारे विषय में भी कभी ऐसा ही होता है । सच्चे भगवान समझकर सम्पूर्ण जीवनभर उनकी आराधना उपासना की । ये ही ईश्वर सच्चे हैं, जगत को बनाने वाले भगवान् ही सच्चे ईश्वर हैं, इस सृष्टि की रचना करने वाले, दुनिया को बनाने वाले भगवान हैं, जगत् को सुख - दुःख देने वाले भगवान ही सच्चे भगवान हैं । ईश्वर है, ईश्वर जो करता है वही होता है... आदि स्वरुप में भगवान को मानकर चलते रहे... ऐसी मान्यता - श्रद्धा रखी । __इस प्रकार जब जीवन के ५०-६० वर्ष बीत गए और फिर पता चला कि सृष्टि का रचयिता, जगत् का निर्माता तो कोई है ही नहीं... जिसका अस्तित्व ही नहीं है ऐसे को मैंने.५०-६० वर्षों तक माना पूजा उनकी आराधना की... ऐसा 204
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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