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मान्यता सच्ची होनी चाहिये :
जगत् सुधरे या न सुधरे, भगवान की भूल अथवा भगवान सुधरे या न सुधरे, भगवान का स्वरुप सुधरे या न भी सुधरे परन्तु हमें अपनी भूल शीघ्रातिशीघ्र सुधार लेनी चाहिये, क्योंकि अपनी भूल के कारण हमें ही हानि है, हमारा ही कार्य बिगड़ता है । अपनी मान्यता को सुधारने के लिये ही आज का विषय है । आज हमें यही देखना है कि भगवान किसे माना जाय । सच्चे अर्थ में भगवान किसे माने ? ईश्वर का वास्तविक सच्चा स्वरुप क्या है ? फिल्टर पेपर से पानी छानने से जिस प्रकार कचरा निकल जाता हैं और शुद्ध पानी पीने को मिलता है उसी प्रकार सच्ची मान्यता से, सम्यग् दर्शन और सम्यग् ज्ञान से किसी भी विषय संबंधी मिथ्या मान्यता दूर हो सकती है और सच्ची मान्यता प्रवर्तित हो जाती है। सम्यग् ज्ञान और सम्यग् दर्शन से मिथ्या ज्ञान को निवारण होने के साथ साथ सच्ची पहचान भी संभव है ।
हीरे का परीक्षक जौहरी परीक्षा करके हीरा ले तो ही वह उपयोगी है, अन्यथा हानि उस जौहरी को ही है । इसी प्रकार भक्त भी भगवान की पहचान प्राप्त करके - उनकी परीक्षा करके ही उन्हें माने, नमन करे, तो लाभदायक है, अन्यथा हानि भी भक्त को ही है । अतः हमें जिसे ईश्वर मानना है, पहले उसकी सच्ची पहचान करनी चाहिये, तत्पश्चात् ही उसे मानने की बात आती हैं ।
परीक्षा करके स्वीकारो :
किसी भी वस्तु का स्वीकार करने से पूर्व हम उस वस्तु के विषय में पूरी जानकारी प्राप्त करते हैं, खरीदने से पूर्व हम उसकी जाँच - परीक्षा करते हैं । सागसब्जी की भी खरीदी करने से पूर्व हम भली प्रकार उसे देख लेते हैं । जौहरी हीरे का क्रय करने से पूर्व उसकी परीक्षा करना नहीं भूलता है । सोना खरीदने वाला भी कसौटी पर सोने को कस कर देखेगा और शुद्ध सोना होगा तो ही उसे खरीदेगा । यह तो जगत का सर्व सामान्य व्यवहार है । यदि यह वृत्ति सर्वत्र रखी जाती हो तो यहाँ क्यों नहीं ? हरिभद्रसूरीश्वरजी महाराज स्पष्ट शब्दों में सूचना देते हैं कि 'सूक्ष्म बुद्ध्या सदा ज्ञेयो धर्मो धमार्थिभिर्नरैः अर्थात् धर्म प्राप्त करने की इच्छुक व्यक्ति को धर्म की परीक्षा करने के पश्चात् ही धर्म प्राप्त करना चाहिये। इसी प्रकार जिसे हमें इश्वर मानना हैं, जिस ईश्वर की हमें आराधना पूजा करनी है, जिसके नाम का सदैव जाप करना है उसकी भी पूर्व परीक्षा करके ही
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