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________________ जगत्कर्ता ईश्वर की समीक्षा सर्वज्ञस्वरुप वीतराग जिन जिनेश्वर परम पिता परमेश्वर - ज्ञानव्यापी - जगतद्दृष्टा - अरिहंत - परमात्मा के चरणों में अनंतानंत भावनमस्कारपूर्वक - - - .. कर्तास्ति कश्चिद् जगतः स चैकः स सर्वगः स स्ववशः स नित्यः । इमाः कुहेवाकविडम्बनाः स्युस्तेषां न येषामनुशासनकस्त्वम् ॥ इस जगत का कोई कर्ता ईश्वर है, ( 9 ) वह एक ही है, (२) वह सर्वव्यापी है, (३) वह स्वतंत्र है, (४) और वह नित्य है (५) हे नाथ ! ये जिनके अनुशासक आप नहीं है ऐसे दुराग्रहवादी इस प्रकार की विडंबना के शिकार बनते हैं । नमो अरिहंताणं : नमस्कार महामंत्र में सर्व प्रथम पद 'नमो अरिहंताणं' हैं । सर्व प्रथम अरिहंत परमात्मा को नमस्कार किया गया है । इसमें कहा गया है कि नमस्कार हो अरिहंत भगवंतों को । जिन अरिहंत प्रभु को हम भावपूर्वक नमस्कार करते हैं वह हमारा नमस्कार निरर्थक - निष्फल न चला जाय इस बात का हमें ध्यान रखना है । हमारे नमस्कार के व्यर्थ - निरर्थक सिद्ध होने में दोनों ओर से कारण की संभावना है । संभव है कि हमारी ओर से अर्थात् आराधक साधक पक्ष की ओर से नमस्कार के भावों में त्रुटि रह जाए, हमारी ओर से भाव का तथा नमस्कार की क्रिया या भली प्रकार से औचित्य पालन न हो सके, प्रभु का मानसम्मान हम विधिवत् न कर पाएँ अथवा उसमें हमारी ओर से अनादर भाव आ जाए तो हमारे द्वारा किये गए नमस्कार निष्प्रयोजक सिद्ध हो जाते हैं । - दूसरे प्रकार से जिस भगवान को हम नमस्कार करते हैं वे भगवान ही कदाचित् सच्चे अर्थ में भगवान ही न हों और फिर भी हम उन्हें सच्चे मानकर नमस्कार करते हो तब भी हमारे द्वारा कृत नमस्कार निरर्थक हो सकते हैं । संभव है कि ऐसे नमस्कार हमें तिराने के बजाय डुबाने में भी कारण बन जाएँ । भूतकाल बीतें हुए असंख्य भवों में जब भगवान की पहचान ही हुई थी तब चाहे जिसे भगवान मानकर हमने नमस्कार किये और उन नमस्कार से आज तक हम 201
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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