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सृष्टि की शाश्वत व्यवस्था :
प्राचीन सांख्य, पूर्वमीमांसक, जैमिनि संप्रदाय, भट्ट प्रभाकर, बौद्ध और जैन दर्शनावादी इस सृष्टि को अनादि सिद्ध मानते हैं, जब कि नव्य वेदान्त, न्याय वैशेषिक, प्रातंजल, नवीन सांख्य, कुरानवादी मुसलमान, उपनिषद् पुराणवादी और बाईबिलवादी ईसाई, पारसी आदि सृष्टि को जगतकर्ता ईश्वर की कृति मानते हैं। इस प्रकार जगत में सृष्टि के विषय में दो स्वतंत्र विचार श्रेणियाँ प्रवर्तित हैं ।
जैन दृष्टि से अनादि अनंत शाश्वत इस जड़ चेतन की समग्र सृष्टि में चौदह राजलोक में सभी जीव अपने अपने निश्चित् स्थान में ही उत्पन्न होते हैं । कर्मविज्ञान जीवात्मा संबंधित गति में जाता है, वहाँ जन्म धारण करता है । गतियोग्य वैक्रिय
औदारिक आदि शरीर बना लेता है । अपनी देह रचना स्वयं जीव खुद ही करता है, भले ही वह फिर माता के गर्भ में जाय अथवा स्वर्ग नरक में जाए अथवा तिर्यंच गति में पशु-पक्षी बने परन्तु सर्वत्र स्वदेहोचित औदारिक - वैक्रिय आदि कार्मण वर्गणा के पुद्गल-परमाणुओं को ग्रहण करता है, उनका शरीर के रुप में परिणमन करता है और फिर उस शरीर में आयुष्य कर्मानुसार निश्चित निर्धारित काल तक जीवन यापन करता है । स्वर्गीय देवताओं के लिये देवलोक-स्वर्ग है । उस ऊर्ध्वलोक का क्षेत्र ही उनके लिये उपयुक्त है । भुवनपति, व्यंतर ज्योतिष्क और वैमानिक - ये चार जातियाँ देवताओं की हैं । भुवनपति के परमाधामी ३ नरक पृथ्वियों में निवास करते हैं । व्यंतर तिर्छालोक में भी रहते हैं। वैमानिक के कल्पोपपन्न देवतागण १२ देवलोक में उत्पन्न होते हैं और कल्पातीत देवतागण उसके ऊपरे ९ ग्रैवेयक और ५ अनुत्तर इस प्रकार १४ रुप में उत्पन्न होते हैं । सर्वोपरि चौदह राज लोक के ऊपर के सिरे पर ४५ लाख योजन की सिद्धशिला आई हुई है, जहाँ १५ प्रकार से सिद्ध बने हुए परमात्मा निवास करते हैं।
तिर्छालोक में मनुष्य और तिर्यंच पशु-पक्षी निवास करते हैं । इस लोक में असंख्य द्वीप-समुद्र हैं जिनमें से ढाई द्वीप समुद्रों में मानव बस्ती है, फिर क्रमशः आए हुए एक द्वीप एक समुद्र इस प्रकार असंख्यद्वीप समुद्रों में जलचर, स्थलचर और खेचर स्वरुप तिर्यंच गति के पशु-पक्षियों की बस्ती है । ढाई द्वीपान्तर्गत जंबूद्वीप, लवणसमुद्र, घातकीखंड, कालोदधिसमुद्र और अंत में पुष्करार्ध द्वीप इस प्रकार ३ द्वीप और २ समुद्र आए हुए है | उनमें तीसरे पुष्करार्धद्वीप के अर्ध भाग में अर्थात् १६ में से ८ योजन परिमित मानुषोत्तर पर्वत के पूर्व के क्षेत्र में मनुष्य बस्ती होने
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