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मान्यता है । अतःस्थूल विज्ञान की अनेक मान्यताएँ संदिग्ध हैं ।
धर्मास्तिकाय आदि के परमाणु नहीं होते हैं, क्यों कि वह एक अखंड वस्तु होने से विभाजित नहीं होती, अतः उसका प्रदेश अलग नहीं होता है। इसीलिये उन तीनों के ३-३ भेद सिद्ध होते हैं जब कि पुद्गल स्कंध में से प्रदेश अलग हो सकता है अतः उसे परमाणु कहते हैं ।
पुद्गल की अष्ट महावर्गणाएं :
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x.g
x1. मोहारि
*3 आहार5 +४. तस
५.9वासारवास. 15. भाषा। -७. मन +
८. SI - -मात्मा
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पुद्लास्तिकाय एक जाति है । परमाणु से रचित महास्कंध तक पुद्गल की ही जातियाँ हैं । ये सभी परमाणुओं का पिंड जत्था-समूह जो चौदह राजलोक में ठूस ठूस कर भरा हुआ है । वैसे तो १६ वर्गणाएँ हैं परन्तु मूलभूत ८ ही हैं अतएव अष्ट वर्गणाएँ कहलाती हैं । जैसा कि उपरोक्त चित्र में बताया गया है इन आठ महावर्गणा के नाम इस प्रकार हैं :- (१) औदारिक (२) वैक्रिय (३) आहारक (४) तैजस (५) श्वासोच्छवास, (६) भाषा (७) मन और (८) कार्मण । जीव इन वर्गणाओं को ग्रहण करके अपने ही ढंग से इनका परिणमन करता है । इनमें से शरीरादि का
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