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________________ पुद्गल पदार्थ :संबन्धयार उज्जोअ, पभाछायाऽतवे हि य । वण्ण-गंध-रसा फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥११॥ ये चित्र पुद्गल पदार्थों के हैं, इन्हें देखने से पुद्गल जन्य पौद्गलिक पदार्थों का स्पष्ट ख्याल आ जाएगा । जो भी शब्द हम बोलते हैं वे सब पुद्गल हैं । ये ध्वनि के रुप में प्रसरित होते हैं तथा कर्णेन्द्रिय द्वारा ग्राह्य बनते हैं । रेडियों-टेलीफोन आदि यंत्रो के माध्यम से ये ग्रहण किये जाते हैं । उधोत छाया। . र. अधक प्री उद्योत - सूर्य का प्रकाश है । प्रकाश स्वतंत्र द्रव्य है । अंधकार का अभाव नहीं है । प्रकाश भी पोद्गलिक है । टी.वी. के लिये इसी का माध्यम लिया गया है । यह यंत्र प्रकाश की किरणों को ग्रहण करके चित्र प्रस्तुत करता है । छाया- यह भी पद्गल है । Photo चित्रों को छाया चित्र कहते हैं । अंधकार - अॅधकार स्वतंत्र पुद्गल द्रव्य है । इसका स्वंय का स्वतंत्र अस्तित्व है, यह श्याम वर्ण का है । आतप - सूर्यकान्त मणि, सूर्य आदि का ऊष्ण प्रकाश । धूप को भी आतप कहते हैं । आतप 191
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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