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अनंत आकाश-एक अखंड द्रव्य हैं । आकाशास्तिकाय प्रदेश समूहात्मक अस्तिकायवान् द्रव्य है और इसका स्वभाव है स्थान देना । यह अव्याबाध गुणयुक्त अदृश्य-अरुपी पदार्थ है । बाहर ऊपर की ओर देखें तो बादलों के रंग वाला जो पदार्थ छाया हुआ दिखता है वह किसी प्रकार का आवरण या पर्दा नहीं है, बल्कि अंतविहीन अनंत आकाश है । यह स्थान प्रदान करनेवाला माध्यम A Medium of space है जिसे आकाश नामक संज्ञा दी गई है । .
विचार करों ! क्या यह आकाश किसी के द्वारा बनाया गया है ? क्या किसी ईश्वर द्वारा यह बनाया गया हो ऐसी संभावना लगती है ? परन्तु स्पष्ट उल्लेख है कि जब ईश्वर की उत्पत्ति हुई थी तब भी आकाश का अस्तित्व तो था ही तब फिर क्या बनाना पड़ा ? ईश्वर की उत्पत्ति होने के कारण अनित्य विनाशशील है, जब कि आकाश आदि ये तीनों पदार्थों में उत्पन्न होने का स्वभाव नहीं है । कोई इनका जन्मदाता नहीं है । ये अनादिकाल से सदैव रहने वाले स्थायी अमूर्त नित्य एवं अविनाशी पदार्थ हैं, तब सृष्टि या प्रलय का प्रश्न ही कहाँ उत्पन्न होता है ? जो अनित्य है वही बनता है, उत्पन्न होता है । जो त्रिकाल नित्य है वह अनुत्पन्न है, नित्य है अविनाशी है ।
पुद्गलास्तिकाय -
समग्र ब्रह्मांड में प्रसरित अनंत पुद्गल भी अपना महत्वपूर्णस्थान रखते हैं । जड़ पदार्थों को पुद्गल संज्ञा दी पुद्गल गई है। पुरण- गलन स्वभाव वाले पदार्थों को पुद्गल कहते
। इस जगत में मात्र दो ही पदार्थ हैं। एक है चेतन आत्मा और इसके सिवाय अन्य जो भी पदार्थ अस्तित्व में है वह है अजीव ! अजीव के भेदों में पुद्गल का समावेश होता है । जितनी भी बाह्य भौतिक पौद्गलिक वस्तुएँ दिखाई पड़ती हैं वे सभी पुद्गल से निर्मित हैं ।
जैन दर्शनकारों ने एक पुद्गल की शोध बृहत् रुप में
की है और इनमें से ही संख्या बढ़ाकर एक-एक पदार्थों का वर्गीकरण करके विज्ञान जिसे अलग से matter कहता है, उनelements की संख्या ११३ से ऊपर बताई है। वर्षों से जैसे जैसे शोध करते गए वैसे वैसे पदार्थों की संख्या में वैज्ञानिक वृद्धि
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