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पंचास्तिकाय स्वरुप -
पंचास्तिकाय
जीवास्तिकाय धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय पुद्गलस्तिकाय अस्ति + काय = अस्तिकाय । अस्तिकाय का अर्थ प्रदेश समूहात्मक द्रव्य होता है। जैसे एक वस्त्र है, पर वास्तव में वह वस्त्र रेशों कां समूह है । एक ताना खड़ा और दूसरा आड़ा बुनने पर वस्त्र संज्ञा बन गई । इसी प्रकार एक धर्मास्तिकाय अथवा अधर्मास्तिकाय जो पदार्थ है वे क्या है ?
धर्मास्तिकाय
इस शब्द में भी धर्म + अस्तिकाय शब्द है अर्थात् चौदह राजलोक में व्याप्त अजीव द्रव्य जो स्वयं प्रदेश समूहात्मक रुप में अपना अस्तित्व रखता है, वह अरुपी - अदृश्य है, परन्तु सभी जीवों और पुद्गलों की गति में सहायक द्रव्य है । जैसे मछली पानी की सहायता से गति कर सकती है, उसी प्रकार चौदह राजलोक रुप ब्रह्मांड में किसी की भी गति धर्मास्तिकाय की सहायता से होती है । धर्मास्तिकाय को Medium of Motion या motivating Entity कहते हैं । यदि यह पदार्थ न हो तो जगत में कोई भी गति नहीं कर पाए । यह प्रदेश समूहात्मक चौदह राजलोक व्यापी एक अखंड अविभाज्य द्रव्य है । यह मात्र लोक में ही है । अलोक में इसका सर्वथा अभाव है ।
धर्मास्तिकाय
अधर्मास्तिकाय
अधर्मास्तिकाय :
ठीक धर्मास्तिकाय से विपरीत पदार्थ अधर्मास्तिकाय है । यह प्रदेश समूहात्मक एक अरुपी द्रव्य है जो चौदह राजलोक में
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