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पंचास्तिकाय
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षड़द्रव्यात्मक लोक -
पंचास्तिकाय युक्त समस्त लोक
जीवास्तिकाय पुद्गलास्तिकाय
धर्मास्तिकाय अधमस्ति काय
आकाशास्ति काय (खाली जञ्चा)
द्रव्य अर्थात् पदार्थ-वस्तु । द्रव्य की व्याख्या करते हुए शास्त्रकार महर्षि उमास्वातिजी तत्त्वार्थ सूत्र में लिखते हैं कि 'गुण पर्यायवद् द्रव्यम्'- गुण और पर्याय वाला जो होता है वह द्रव्य कहलाता है । गुण द्रव्य में ही रहता है । जैसे सूर्य में प्रकाश रहता है । यहाँ सूर्य द्रव्य है तो प्रकाश उसका गुण हैं। गुण और गुणी दोनों साथ ही रहते हैं । गुणों का समूहात्मक स्वरुप द्रव्य हैं। ऐसे द्रव्य की पर्याय बदलती रहती हैं, उसकी आकृतिओं में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं । एक द्रव्य की अनंत पर्याय होती रहती हैं । इस प्रकार द्रव्य - गुण और पर्याय - ये तीन अवस्थाएँ हैं । (1) Substance (2) Attributes and (3) Modes इन तीनों
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