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इस प्रकार तीनों नाम निम्न लिखित गाथाओंमें दोनों प्रकार से बताए गये
(१) जं किंचि नाम तित्थं - सग्गे - पायालि माणुसे लोए । (२) जावंति चेईआईं उड्ढे अ अहे अ तिरिय लोए अ ॥
लोक के तीन टुकड़े या तीन भाग नहीं हैं परन्तु तीन नाम हैं । यह तीन लोक का स्वरुप है, चौदह राजलोक- १४ राज परिमाण में हैं ।
रज्जु अर्थात् रस्सी ! रस्सी जैसे वस्तु की लंबाई-चौड़ाई ऊँचाई नापने के काम में आती है वैसे ही अनंत लोकाकाश के मध्य रहे हुए लोकक्षेत्र को ऊपर से नीचे तक रस्सी से नापने पर १४ रज्जु जितना होता है अतः यह १४ राज परिमित लोकक्षेत्र कहलाता है । १ रज्जु का एक राज, इस प्रकार १४ राज जितना लोक बस्ती का क्षेत्र है ।
एक राज से दूसरे राज तक नाप बताते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि १,८१,१७,९०० मण तपाया हुआ लोहे का गोला कोई शक्तिशाली देव अपनी पूर्ण शक्ति से फेंके और वह लुढ़कते लुढ़कते छ माह, छ दिन, छ प्रहर, छ घटिका, और छ समय तक गिरता ही जाए उतने काल में जितना क्षेत्र काटे उसे एक राजलोक कहते हैं, अर्थात् असंख्य योजन लम्बे विस्तारवाला १ राजलोक कहलाता है ऐसे १४ राजलोक हैं अर्थात् १४ राजलोक क्षेत्र का यह सम्पूर्ण जगत-संसार है । श्री भगवती सूत्र में लोक को असंख्य कोटा-कोटि योजन जितना क्षेत्र कहा गया है । समस्त लोक को चोकोर खंड बनाकर खंडों के विभाग बाँटा गया है ।
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