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सर्वज्ञ भगवान सृष्टि की रचना नहीं करते हैं । वे क्यों करने लगे ? जगत में अनंत जड़ पुद्गल पदार्थ हैं, उन्हीं के संयोग वियोग से सृष्टि का निर्माणादि कार्य होता ही रहता है, स्वतः चलता रहता है, फिर वीतराग को सृष्टि रचना करने की कहाँ आवश्यकता रहती है ? दूसरी ओर राग-द्वेष से सर्वथा अलिप्त वीतराग परमात्मा में किसी भी प्रकार की इच्छा अनिच्छा जैसा कुछ भी तो नहीं है, फिर सृष्टि बनाने की कोई संभावना ही नहीं रहती । यह सब कुछ तो जो रागी-द्वेषी होता है, उसे शोभा देता है । अब सोचो कि जिसका निर्माण किया नहीं जाता, जो स्वयं बनता है उसे भी रागी-द्वेषी ईश्वरों के सिर मढ़ दिया जाता हो अथवा वह ईश्वर कहता है कि मैं बनाता हूँ - मैं इसका निर्माण करता हूँ आदि, तो इसमें उस ईश्वर की रागद्वेष की भावना स्पष्ट रुप से प्रकट होती है । इसमें कोई संदेह नहीं रहता कि ऐसा निर्माता ईश्वर रागी और द्वेषी है, क्यों कि स्वतः बनने वाली सृष्टि निर्माण का श्रेय वह लेता है जबकि ऐसा करने की तनिक भी आवश्यकता रहती ही नहीं है ।
___ जैन धर्म स्पष्ट और साफ शब्दों में कहता है कि सृष्टि की रचना करने वाला कोई नहीं, इसकी रचना करने के लिये किसी को कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है । जगत में अनंत जीव हैं । वे अनंत पुद्गल पदार्थों के साथ स्व-स्व कर्मानुसार संयोग-वियोग करते रहते हैं - उनका संयोग-वियोग होता रहता है और इसी का नाम है सृष्टि । सृष्टि में और कुछ नहीं बल्कि यही होता रहता है । सूक्ष्म से लेकर स्थूल तक अनेक प्रकार के अनंत जीव हैं । जीव में ही कर्तृत्व-शक्ति है, अतः कर्ता जीव ही है । जीव कुछ भी करता है, उसका फल वह स्वयं ही भुगतता है । इस प्रकार भोक्ता भी वह स्वयं ही है । उसके द्वारा कृत कर्मों का उसे फल देने वाली किसी अन्य एजेन्सी की आवश्कता नहीं रहती । स्वकृत कर्मों का फल समय आने पर जीव स्वयं प्राप्त करता है और उसे भोगता है, अतः कर्तापन और भोक्तापन जीव में ही माना जाता है । इसी प्रकार ज्ञान योग से जानना और दर्शनयोग से देखना - ये दोनों प्रकार की क्रियाएँ भी जीव की स्वयं की ही हैं । ज्ञान और दर्शन जीवात्मा के गुण है, अतः उसके योग से आत्मा ज्ञाता और दृष्टा दोनों ही है । इसीलिये वह जानता है और देखता है । यही कारण है कि जीवात्मा भाव से ज्ञाता - दृष्टा और कर्ता भोक्ता स्वयं ही है । केवलज्ञानी सर्वज्ञ-वीतरागता इस जीवात्मा की ही उत्तम अवस्था है - कक्षा है । इस अवस्था में रहे हुए जीव को ही परमात्मा कहा जाता है | इसे ही परमेश्वर, परम पिता, भगवान, जिन-जिनेश्वर, सर्वज्ञ, वीतरागी,
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