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शक्ति स्वरुप गुण सहायक हैं । गुण और गुणी का अविच्छिन्न संबंध होता है अतः ज्ञान और ज्ञानी का भी अविच्छिन्न संबंध होता है । ज्ञान जिसमें होता है वह ज्ञानी कहलाता है । ज्ञान के पाँच प्रकारों में केवलज्ञान पाँचवा प्रकार है । केवलज्ञान अर्थात् अनंत वस्तु विषयक अनंत ज्ञान के अपर नाम से भी विख्यात है । यह ज्ञान त्रिकालाबाधित होता है, अर्थात् त्रिकाल में भी इसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं पहुँचती । एक ही समय में त्रिकाल का ज्ञान संपूर्ण रुप से होता है; इसीलिये केवलज्ञान को पूर्णज्ञान-संपूर्ण ज्ञान के नाम से भी सम्मानित किया जा सकता है जिसे भी केवलज्ञान होता है वह केवली व्यक्ति के स्वरुप में जाना जाता है । सर्वज्ञ अर्थात जो सारे ही पदार्थ को जाने और प्रत्यक्ष रुप से देखे । केवलज्ञानी महात्मा समस्त लोक-ब्रह्मांड के सभी अनंत पदार्थों को जानते हैं और देखते हैं, उन्हें स्वयं उन पदार्थों तक जाना नहीं पड़ता, परन्तु उनका ज्ञान ही सर्व पदार्थों को इस प्रकार व्याप्त कर लेता है जैसे दर्पण में वे प्रतिबिंबित होते हों । केवलज्ञान में अनंत पदार्थ स्वतः परिलक्षित हो जाते हैं । केवली मनुष्य यहाँ लोक में आसीन होते हैं और यहाँ बैठे बैठे ही अपने अनंत ज्ञान से अनंत लोकालोक के अनंत पदार्थों को एक साथ देखते और जानते हैं । ऐसे सर्वज्ञ प्रभु, केवली भगवंत, अनंतज्ञानी परमात्मा ने इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड लोक अलोक तथा सृष्टि को जिस स्वरुप में देखा है - जैसी है, जिस स्वरुप में है उसी स्वरुप में उसे देखा है - जाना है उसी स्वरुप में उन्होंने इसका वर्णन किया है । केवली भगवंत ने अपने चार धन घाती कर्मों का क्षय करके केवलज्ञान प्राप्त किया है, ४ घनघाती कर्मों में मोहनीय कर्म का भी क्षय करके वे वीतराग बने हैं और फिर वे केवली बने हैं । वीतराग हो जाने के कारण अब उनमें क्लेश-कषाय, राग-द्वेष अथवा क्रोध -मानादि किसी भी प्रकार के कषायों का अस्तित्व ही नहीं रहता और कषाय न होने से असत्य भाषण का कोई कारण ही नहीं रहता । वे अब क्यों असत्य बोलें ? क्यों विपरीत वर्णन करें ? अब कोई प्रयोजन ही नहीं रहा, अतःजो कुछ भी वे कहेंगे, वह सत्य स्वरुप में ही कहेंगे । पदार्थ जैसा है उसे वैसा ही वे कहेंगे, वस्तु के यथार्थ स्वरुप का ही वे वर्णन कहेंगे, उसमें तनिक भी परिवर्तन वे नहीं करेंगे । .
वीतराग - सर्वज्ञ प्रभु सृष्टि रचना नहीं करते :
जैन दर्शन द्वारा अभिप्रेत यह सनातन सत्य का सिद्धान्त है कि वीतराग
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