________________
सिद्धान्त के आधार पर न्यायपूर्वक किसी को दोषी या अपराधी सिद्ध न कर सकने पर मेरी निंदा करता है, अतः अपराधी है ही, ऐसी ही बात यहाँ हुई है । जब जैनों को नास्तिक कहने का कोई न्यायसंगत सिद्धान्त हाथ न लगा तो छोटी सी ठंडी गाली दे दी कि तुम जैन लोग हमारे वेदों की निंदा करते हो अतः नास्तिक हो ।
तो प्रश्न यह उठता है कि इस व्याख्या के अनुसार मात्र जैनों को ही नास्तिक क्यों कहा गया ? कपिल मुनि के मतानुयायी सांख्य कहाँ जाएँगे ? जैमिनी के मत को माननेवाले पूर्व मीमांसक फिर आस्तिक कैसे रहेंगे ? कणाद मतवाले वैशेषिक भी ईश्वर कर्तृत्ववाद कहाँ मानते हैं ? इसी प्रकार मीमांसक भी ईश्वर कर्तृत्ववाद या जगत कर्तृत्ववाद ईश्वर में नहीं मानते तो क्या ये सभी नास्तिक नहीं ? जब कि उन सभी को तो आस्तिक माना कैसा न्याय है ?
कपिल मुनि का प्रत्युत्तर :
सत्यार्थ प्रकाश में प्रकाशित उल्लेख है कि महाभारत के शांति पर्व सं. २६८ में गाय और कपिल का संवाद है । यज्ञों में गाय का वध किया जाता था । गाय ने स्वरक्षा हेतु कपिल मुनि के पास प्रार्थना की । तब कपिल मुनि बड़े ही दुःखी और व्यथित हृदय से कहते हैं कि - वाह रे वेद ! तूने हिंसा को भी धर्म बना दिया? फिर तो कपिल मुनि ने स्पष्ट घोषणा की कि हिंसा से युक्त धर्म कदापि धर्म नहीं हो सकता है चाहे वह वेद भी क्यों न हो ? इस वेद विहित हिंसा का विरोध किया - मात्र इसी कारण से ब्राह्मणों ने कपिल मुनि को नास्तिक घोषित कर दिया और आश्चर्य तो इस बात का है कि जो कपिलमुनि वेद की स्तुती करते हैं वे ही वेद के विरोधी है । वेद में एक ऋषि अन्य ऋषि की बात का विरोध करता है तो प्रश्न उठता है कि किसे आस्तिक माने और किसे नास्तिक कहें ? सांख्य दर्शन में भी प्राचीन सांख्य और अर्वाचीन सांख्य - इस प्रकार दोनों ही पक्ष हैं परन्तु प्राचीन सांख्यों की ख्याती लुप्त होती जा रही है ।
पूर्वमीमांसक भी ईश्वर को जगतकर्ता नहीं मानते :
__ जैमिनी मुनि प्रणीत पूर्व मीमांसा दर्शन भी जगत कर्ता के रुप में ईश्वर को कहाँ मानता है ? वेद को मानते हुए भी मीमांसक ईश्वर को नहीं मानते हैं । उनका कथन है कि 'किमन्तर्गडुना इश्वरेण - ऐसे अन्तर्व्यापी अथवा अन्तर्गत इश्वर से क्या
173