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का ऊत्तरदायित्व है वैसे ही ईश्वर पर भी सृष्टि रचना का उत्तरदायित्व है। जैन दर्शन इस प्रकार की मान्यता से सहमत नहीं है । ईश्वर और सृष्टि के मध्य अपरिहार्य संबंध है - ऐसा भी नहीं है । जैन दर्शन का कथन है कि ईश्वर का अस्तित्व ही सृष्टि के आधार पर है और सृष्टि का अस्तित्व ईश्वर के आधार पर है - ऐसा नियम करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है, जब कि वैदिक दर्शन तो उपरोक्तानुसार दोनों में अपरिहार्यत्व के साथ साथ एक दूसरे को परस्पर आधाराधेय और अन्योन्याश्रित मानता है परन्तु इस पक्ष में तो सैंकडो दोष आने वाले हैं। इस प्रकार मानते हुए भी वैदिक दर्शन ईश्वर को नित्य मानता है और सृष्टि को विनाशशील मानता है। प्रलय काल में सृष्टि का विनाश होनेवाला है । मात्र वेद-ईश्वर नित्य रहनेवाले है। इस प्रकार एक को नित्य और दूसरे को अनित्य मानने से कैसे चलेगा ? क्यों कि जब सृष्टि का ही प्रलय हो जाएगा तब सृष्टि रहित ईश्वर का अस्तित्व कैसे मानोगे? वह कहाँ रहेगा ? और यदि सृष्टि-रचना ही उसका कार्य हो तो प्रलयकाल में वह ईश्वर कहाँ बैठेगा ? और क्या करेगा ? कारण यह है कि प्रलयकाल में जीवों का सर्वथा अभाव हो जाने पर किसे फल देने और किसे बनाने आदि का काम ईश्वर करेगा ?
इसके अलावा सृष्टि अनित्य और ईश्वर नित्य ऐसे परस्पर विरोधी दोनों धर्म - धर्मीओं को एक दूसरे के आधार पर अन्योन्याश्रय में हम कैसे रख सकेंगे? और फिर ईश्वर के बिना सृष्टि नहीं तथा सृष्टि के बिना ईश्वर नहीं - ऐसी मान्यता का क्या होगा ? वह कैसे टिक सकेगी ? क्या सृष्टि कर्ता है ? नहीं सृष्टि तो कार्य है और कर्ता ईश्वर है । सृष्टि धर्म है या धर्मी ? सृष्टि धर्मी नहीं है, यह तो धर्म है । धर्मी तो ईश्वर है, ईश्वर का धर्म सृष्टि की रचना करना है। धर्मी और धर्म के मध्य परस्पर अभेदभाव होता है अथवा भेदभाव होता है ? अभेदभाव गुण-गुणी के मध्य होता ही है, गुणगुणी से अलग नहीं रहता - बल्कि साथ ही रहता है । जैसी गुण और गुणी की बात है वैसी ही बात धर्म और धर्मी के संबंध में है; दोनों में कोई भेद नहीं है । धर्म सदैव धर्मी के साथ ही रहता है । धर्म विहीन धर्मी नहीं होता और यहाँ यदि सृष्टि को धर्म कहते हैं और ईश्वर को धर्मी कहते हैं और धर्मी ईश्वर का धर्म है सतत सृष्टि रचना करना तो फिर प्रश्न यह उठता है कि प्रलय काल में ईश्वर क्या करता है ? क्या तब भी सृष्टि करता है ? तो फिर जैसे प्रकाश के विना सूर्य वैसे ही सृष्टि कार्य के बिना ईश्वर कैसे संभव होगा ? क्या कभी प्रकाश
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