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उत्पत्ति है । पारसी मतानुसार सलजुगसतयुग और कलयुग -कलियुग भी एक प्रकार की हवा है । सतयुग की हवा शांती का साम्राज्य फैलानेवली है जब कि कलियुग की हवा नाश - प्रवर्तिनी है । इनके कथन के अनुसार यह संसार एक क्रिड़ा है, जीव मदारी है और संसार क्रिडांगण है ।
सृष्टि विषयक समीक्षा :
उपरोक्त मतों - दर्शनों के विचार देखने और जानने से सृष्टि का परिचय होगा । इस जगत में भिन्न भिन्न सैंकड़ो मत है अनेक धर्म हैं एक धर्म में भी अलग अलग भेद संप्रदाय हैं । उनके भी अपने अपने विभिन्न मत है । मुख्य रुप से जो छह दर्शन है जिन्हे हम षट्दर्शन के नाम से जानते हैं उन में भी आस्तिक दर्शन - नास्तिक दर्शन आदि अनेक है । दर्शनों में भी भेद-उपभेद दर्शन, मत, पक्ष, शाखाएँ आदि अनेक हैं । अनेक में नाना प्रकार की विभिन्न मान्यताएँ है। सभी दर्शन या धर्म अथवा मत मतांतर ईश्वरकृत सृष्टि नहीं मानते हैं । ईश्वर को जगत् का कर्ता भी नहीं मानते हैं । ईश्वर ने ही यह सष्टि बनाई है ऐसा वे नही कहते हैं , फिर भी. जैन दर्शन ईश्वर को भी मानता है और सृष्टि को भी मानता है, इसमें तो जरा भी शंका की बात नहीं है । अन्तर मात्र इतना ही है कि अन्य दर्शन सृष्टि और उसका रचयिता ईश्वर मानते हैं । उनकी मान्यतानुसार ईश्वर और कोई नहीं बल्कि सृष्टि का निर्माण करनेवाला, सृष्टि की रचना करनेवाला है - इस प्रकार अन्योन्याश्रयी - एक दूसरे पर आधार रखने वाला, एक दूसरे के आधार पर ही एक दूसरे का आधार मानते हैं अर्थात ईश्वर हो तो ही सृष्टि होती है और सष्टि होती है इसीलिये ईश्वर कहलाता है । ईश्वर के बिना सष्टि नहीं और सष्टि के बिना ईश्वर नहीं - ऐसी मान्यतावाले वैदिक आदि दर्शन जो कि मुख्यतः वेदाश्रयी दर्शन है उनकी यह मान्यता है ।
जैन दर्शन इन में एक ऐसा दर्शन है जो पानी पर जिस प्रकार तेल अलग दिखाई पड़ता है, उसी प्रकार इन सब से भिन्न स्वतंत्र रुप रखता है । जैन दर्शन ने ईश्वर का आधार सृष्टि पर नहीं रखा है । जैन दर्शन ने यह कभी नहीं कहा है कि जो सृष्टि का निर्माण करता हो, जो सृष्टि की रचना करता हो वही ईश्वर कहलाता है । प्रतिपक्षी मतों की मान्यता है कि ईश्वर हो तो वह सृष्टि बनाता ही है - जैसे स्त्री हो वही भोजन बनाने का कार्य करती है - जैसे स्त्री पर भोजन बनामे
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