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________________ है । मस्जिद उनका मंदिर कहों अथवा धर्मस्थल कहो बस यह एक ही है। इनका पवित्र धर्म ग्रंथ कुरआन शरीफ है । इस्लाम धर्म में भी २४ पैगंबर माने गए है और यह भी सृष्टिकर्ता ईश्वर को ही मानता है, यद्यपि अपनी मान्यता यह अपनी ही तरह से प्रस्तुत करता है । अतः यह धर्म भी जगत कर्तृत्ववादी धर्म है और भगवान को ही सृष्टि का कर्ता मानता है । इसकी सृष्टि विषयक मान्यता इस प्रकार है :कुराने मस्जिद सुरा -२ सुरतुलबकरा में वर्णन है कि तुम खुदा को क्यों नहीं मानते ? तुम जब निर्जीव थे तब उसने तुम्हें जीव दिया । फिर वही मृत्यु भी देगा - और फिर वही तुम्हें प्राणदानकर जीवीत भी करेगा । इस पृथ्वी पर सब कुछ इन्सान के लिए पैदा किया है । फिर उसने आकाश पर अपनी सत्ता फैलायी । (यह वाक्य कुरान का गूढार्थ है । उसके अर्थ के विषय में पुछताछ करना निषिद्ध है ।) फिर 1) उसने सात आसमान आकाश बनाए । - सृष्टि विषयक चर्चा करते हुए लिखते हैं कि - परवरदिगार ने फरिश्ते से - कहा कि मैं जमीन पर एक खलीफा पैदा करने वाला हूँ । यह अधिकार आदम के लिये है । इस आदम को उत्पन्न करने के लिये खुदाने इरादा करके अपने नूर में से उत्पादित अगणित फरिश्तों में से जो ४ बड़े फरिश्ते हैं उनमें से (१) जोबराईल (२) मिकाइल और (३) एसराफिल नामक तीन फरिश्तों को बुलाकर भाँति भाँति की मिट्टी की सात मुट्ठी भर कर लाने के लिए भेजा, परन्तु पृथ्वी ने खेद प्रकट किया, इसलिये वे तीनों लौट आए । तब खुदाने चौथे फरिश्ते एजराईल को भेजा और उसने अपने काम में सफलता प्राप्त कर ली । खुदा ने उसे मौत के फरिश्ते का पद सौंपा । वह देह को अलग करके मौत पैदा करता है । फिर उस मिट्टी में से खुदा ने नर की आकृती बनाई और उसे ४० वर्ष तक सूखने दी । खुदा ने उस शरीर में जीव डाला । उसे बुद्धिमान् आत्मा से पुरुस्कृत किया । उसे बेहस्त में भेजा । फिर उसकि बायीं पसली से स्त्री का निर्माण किया । उसका नाम हाता रखकर उसे आदम के साथ भेजी जिनसे सृष्टि चलती रही । जिस ईश्वर को खुदा के नाम से संबोधित किया जाता है वह जगत का कर्ता है, सृष्टि का रचयिता है। जैसे कोई जादूगर शब्द बोलता उच्चार करता जाता है और एक के बाद एक इस प्रकार अनेक वस्तुएँ निकालकर जगत के लोगों को आश्चर्यचकित बनाया है उसी प्रकार खुदा जो सबका मालिक है वह कुंदादि शब्दों को उच्चारण करता जाता है और उसकी इच्छानुसार एक के बाद एक वस्तु उत्पन्न 164
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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