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________________ शुक्ल यजुर्वेद बृहदारण्यक अध्याय ४ में तो अग्नि से अग्नि - कणों की भाँती आत्मा से प्राण, लोक देव और पंचभूत हुए है । गोपथ ब्राह्मण भाग में अक्षरवाद मत के आधार पर ब्रह्मा के ॐकार के उच्चारण और अनुभव से समस्त लोक का अवलोकन करने का उल्लेख है । शतपद ब्राह्मण में तो 'मनवे ह वै प्राप्तः' इस पाठ के आधार पर पृथ्वी मनु से बनने की बात बताई गई है और ७ वे अध्याय में स यत् कूमो नाम' - इस पाठ में तो कहा गया है कि काश्यप रे पृथ्वी बनाई थी। तैत्तरीय ब्राह्मण १ अष्टक १ अध्याय ३ में लिखा है कि सृष्टि की रचना करने हेतु तपस्या कर रहे थे । उन्होंने पानी के मध्य एक कमल देखा और उसके आधार को ढूँढने के लिये वराह रुप धारण करके कमल की पद्मपत्रनाल की शोध वरने लगे - इतने में उन्हें पृथ्वी मिल गई । वहाँ से गीली मिट्टी लाकर कमल पर रिछाई जिससे पृथिता - पृथ्वी नाम रखा और आधार भूत होने से (अभूत) भूमि नम पड़ा । इस भीगी हुई भुमि को शुष्क बनाने हेतु ४ दिशाएँ बनायी - संकल्प से हवा बनायी, सूखती हुई भुमि को पत्थर से संजोया (मत्थर कहाँ से लाए होंगे १) - इत्यादि वर्णन है । कुछ भिन्न पाठ के साथ तैत्तिरीय संहिता कां.७ में लिखा है कि - आपोवावा इदमग्रसलिलं आसीत् । तस्मिन् प्रजापति र्वायुर्भुत्वाऽचरत् । स इमाम पश्यत् तां वराहो भूत्वाऽहरत् । थोड़ासा अर्थ बदल जाता है । तैत्तिरीय ब्राह्मण के आठवे अष्टक के तिसरे अध्याय में ऐसा उल्लेख है - 'प्रजापतिः सोप राजानमसृजत' प्रजापति ने प्रथम सोम राजा को उत्पन्न किया फिर तीन वेद बनाएँ। म तीनों को-सोम राजा लेता था । ऋग्वेद संहिता में - 'ऋतं च सत्यं च इत्यादि' तप से सत्य हुआ, फिर क्रमशः रात्रि अहोरात्रि और संवत्सर उत्पन्न हुए । स्वयं ने ययापूर्व सूर्य-चन्द्र की कल्पना की तथा आकाथ - पृथ्वी और अंतरिक्ष आदि त्रिलोक बनाने का वर्णन प्राप्त है । अथर्ववेदिय प्रश्नोपनिषद में लिखा है - 'प्रजाकामौ वै प्रजापतिः, स तपोऽतप्यत । स तपस्वत्त्त वा स मिथुनमुत्पादयते रविं च प्राणं च । इत्येतो मे बहुधा प्रजा करिष्यत इति' अर्थात् प्रजापति तपस्या करने के बाद सूर्य और प्राण का युगल उत्पन्न करके विचार करते हैं – कि यह सब प्रजा करेगी - प्राणाधीन है । प्राण से आकाश, वायु, ज्योति, पानी, पृथ्वी, लोक - आदि बनाए है । (प्रश्न १ सूत्र४) मुंडकोपनिषद में (मु.१,खेड १ में) ॐ ब्रह्मा देवानांप्रथमः संबभूव विश्वस्त कर्ता भुवनस्य गोप्ता १. देवों में प्रथम विश्वकर्मा तथा जगरक्षक ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। जैसे मकड़ी से जाल, पृथ्वी से वनस्पति और शरीर पर जैसे रोम उत्पन्न होते है, उस प्रकार से ईश्वर से सृष्टि उत्पन्न होती है । ईश्वर को ही सर्व विश्व का रुप देते ____159
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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