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वेदों में सृष्टि स्वरुपः
___ "पश्य देवस्य काव्य यो न ममार न जीर्यति" - उस देव की रचना (सृष्टि) को देखो जो न तो नष्ट होती है और न जीर्ण होती है । को ददर्श प्रथमं जायमानम्। ऋ १/१६४/४ सर्व प्रथम उत्पन्न होती हुई इस सृष्टि को किसने देखा है ?
. यजुर्वेद के सातवे अध्याय में श्रुतिओं में कहते हैं कि प्रलयकाल में विश्वकर्मा सर्व लोक का संहार करके अकेला रह गया था तब उसकी पुनः इच्छा जागृत होने से उसने जीव रुप में प्रवेश किया । (१७) उस अकेले ने ही प्रथम धर्माधर्म को निमित्त बनाकर पंचमहाभूत उत्पन्न किए और फिर सब को आँख, मुख, हाथ-पाँववाले बनाए। जिस प्रकार मकड़ी अपनी ही लार से जाल बुनती है, उसी प्रकार ईश्वर भी स्वयं से ही यह जगत बनाता है । अतः जगत का उपादान अथवा निमित्त दोनो कारण ईश्वर स्वयं ही है । यजुर्वेद के २३ वे अध्याय में ऐसा भी उल्लेख है कि स्वयंभू महान् जलसमुद्र में समय परिपक्व होने पर गर्भ तैरता था उस गर्भ में ब्रह्माजी उत्पन हुए थे।
यजुर्वेद में ही एक अन्य स्थल पर ऐसा भी लेख है कि सर्व प्रथम यह जगत जलमय था और सृष्टिकर्ता ईश्वर हवा बनकर इसमें डोलता था । फिर इस ईश्वर ने पृथ्वी देखी और तुरन्त वराह का रुप धारण करके भूमि को पकड़ कर रखा, तत्पश्चात् विश्वकर्मा बनकर उसे सुधारा - पृथित अर्थात् वह पृथ्वी कहलाई। उस पर ध्यान करते हुए सृष्टिकर्ता ईश्वर ने देवता, वसु, और आदित्य (सूर्य) बनाए। फिर उन देवताओं ने ही सृष्टिकर्ता ईश्वर को पूछा कि हम सृष्टि - निर्माण कैसे करें? तब उस विराट पुरुष स्वरुप ईश्वर ने कहा कि जिस प्रकार उग्र तपस्या द्वारा मैंने तुम्हें बनाया है उसी प्रकार तुम भी बनाओ । इस प्रकार कहकर देवताओं को ईश्वर ने आकाशाग्नि दी और देवताओं ने तपश्चर्या करके १ वर्ष में सर्व प्रथम एक गाय बनायी - ऐसा और इसके अतिरिक्त भी वर्णन प्राप्त है (सतमत - २३) .
ऐत्तरीय ब्राह्मण ५ कांड, ३२ में कहते है कि ‘एकोऽहं बहुस्याम प्रजायेय'मैं अकेला हूँ अतः अनेक रुप में बनूँ और प्रजा की उत्पत्ति करूँ। ऐसी इच्छा होने पर ब्रह्माने तपस्या करके पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग - ऐसे तीन लोक बनाए । फिर ब्रह्माने इन तीनों से तपश्चर्या करवाकर अग्नि, वायु और सूर्य - तीन ज्योति उत्पन्न करवाई । ज्योति को तप तपाकर अनुक्रम से ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद नामक तीनों वेदों की उत्पत्ति करवाई ।
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