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आकस्मिकवादी :- प्रकृति के असंख्य नित्य परमाणु होते रहते हैं । भूतकाल में अरबों परमाणु संयुक्त हुए थे और भविष्य में भी जिन अरबों परमाणुओं के संयुक्त होने से संयोजन होता रहेगा। इस में से ही एक यह अपनी सृष्टि है । यह परमाणु - संयोजन किसी के प्रयत्न से नहीं, परन्तु आकस्मिक रुप से होता ही रहता है ऐसा इनका कथन है ।
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वैदिक सृष्टि - (वेदों में सृष्टि का वर्णन ) :
हिंदू धर्म में सुविख्यात एवं प्रचलित चार वेद मुख्य है - (१) ऋग्वेद (२) यजुर्वेद (३) अथर्ववेद (४) सामवेद । ये चारों वेद सर्वमान्य पूज्य महान ग्रन्थों के रुप में माने गए हैं । ईश्वर की अपेक्षा भी गुरुत्तर पद वेदों को प्रदत्त है क्यों कि ईश्वर वेदों की रचना नहीं करते हैं । वेद तो अपौरुषैय - अनादि अनंत है। अपौरुषेय अर्थात् किसी भी पुरुष की रचना नहीं । ये किसी पुरुष विशेष से उत्पन्न नहीं हैं और इनकी उत्पत्ती का अंत भी न होने से ये अनादि - अनंत हैं, कभी भी ये नष्ट नहीं होते । यहाँ तक कि समस्त सृष्टि का महाप्रलय हो जाने पर भी ये चारों ही वेद सदैव के लिये यथावत् रहते हैं। ऐसे अपौरुषेय इन चारों वेदों में सृष्टि - विषयक भिन्न भिन्न मान्यताएँ है परस्पर विरोधी विचार धाराएँ भी है । इन्हीं वेदों के अर्थ सैंकडो लोगों ने किए हैं । प्रत्येक ने स्वमत्यानुसार अर्थ किए हैं । इस प्रकार सैंकड़ो शाखाएँ प्रस्फुटित हो चुकी हैं और इसीलिये एक शाखा की बात दूसरी शाखा या संप्रदाय से सर्वथा भिन्न दिखाई पड़ती है । आगे लिखा हुआ होता है कि “ मा हिंस्यात् सर्वभूतानि” अर्थात् सभी जीवों की हिंसा न करें, किसी भी जीव को न मारें और - बाद में उल्लेख मिलता है कि 'स्वर्ग कामो अश्वमेघ यज्ञं कुर्यात् ' स्वर्ग-प्राप्ती के इच्छुक व्यक्ति को अश्वमेयज्ञ - अर्थात् वह यज्ञ जिसमें अश्व की बलि चढाई जाती है - ऐसा यज्ञ करना चाहिये। ऐसे परस्पर विरोधी असंबद्ध संदिग्ध वाक्यों की वेदों में प्रचुरता है । इन वेदों मे सृष्टि और उसकी उत्पत्ति परस्पर विरोधी मान्याताओं का बोलबाला है ।
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ऋग्वेद में सृष्टि वर्णन :
'नासदासीत् नो सदासीत् तदानी नासीत् रजोन्ते व्योमापरोपयेत् किमार्वाखः कुहु काश्यप शर्म नभः किमासीत् गगनं गंभीरम्' । ऋग्वेद के ८ वे अष्टक के ७
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