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कुछ और भी मान्यताएँ :
कईयों के मतानुसार एक परमेश्वर की ३० अवस्थाएँ है । (१) हरि (विष्णु) (२) शिव और (३) ब्रह्मा । इन तीन में शिव जगत का कारण है; विष्णु कर्ता है
और क्रिया ब्रह्मा करता है । कईजनों की मान्यता है कि यह जगत विष्णुमय अर्थात् विष्णू द्वारा रचित है । कई इसे कालकृत मानते हैं, कई मानते हैं कि जगत में जो कुछ भी होता है वह सब ईश्वर की इच्छा से उसी की प्रेरणा से हो रहा है और कई ऐसे हैं जो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को बताते हैं । कपिल के मतावलम्बी संपूर्ण जगत को अव्यक्त से उत्पन्न मानते हैं । शाक्य मुनि के सन्तानीय विज्ञानाद्वैतवादी जगत को क्षणिक मानते हैं । वे क्षण को ही महत्व देते हैं और उन्हीं के कई सन्तानीय बौद्ध जगत को शुन्यरुप में ही मानते हैं ।
कई ऐसे भी हैं जो जगत को पुरुष से उत्पन्न हुआ मानते हैं, अथवा पुरुषमय ही सम्पूर्ण जगत है । इसी वचन के आधार पर कई दैवयोग से और स्वभाव योग से भी इस जगत की उत्पत्ति मानते हैं । कई ‘एकोहं बहुस्यामिति वचनात्' अर्थात् मैं एक हूँ और अनेक रुपमय बनता हूँ - इसी वचन के आधार पर अक्षर ब्रह्मा के क्षरने से अर्थात् मायायुक्त होने से जगत की उत्पत्ति मानते हैं और कोई ऐसा भी पक्ष है जो जगत की उत्पत्ति अंडे में से होने की बात करता है । ऐसा कहना है कि यह लोक यदृच्छा अर्थात् स्वयमेव ही उत्पन्न हुआ है । इसी प्रकार अन्य कई ऐसे भी हैं जिनकी मान्यतानुसार यह जगत भूतों के विकार से उत्पन्न हुआ है । कई यों की ऐसी भी मान्यता है कि जगत अनेक कपी है। सृष्टि की उत्पत्ति - स्थिती विषयक ऐसे अनेक विकल्प है ।
कालवादिओं का पक्ष :
कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥
कालवादी कहते हैं कि काल ही पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और आकाशादि पंचभूतों का निर्माण करता है, काल ही प्रजा का संहार करता है । जिस समय जीव सोए हुए होते हैं तब उनकी रक्षा करने हेतु काल ही जागृत रहता है । काल ही प्रत्येक की रक्षा करता है । ऋतु विभाग, सर्दी, गर्मी, वृष्टि , गर्भधारण, गर्भजन्म, स्थिती, बाल्यादि विविध अवस्थाओं आदि कृतक कार्यों में एकमात्र काल की ही
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