________________
पदार्थ व्यक्त होते हैं वे प्रलय से पूर्व अर्थात् सृष्टि रचना होने से पहले अव्यक्त भाव से ब्रह्मा में लीन थे यह अव्यक्त अवस्था ही, निर्विशेष ब्रह्म सत्ता का रुपान्तर मात्र ही जगतरुप कार्य का उपादान कारण है । कारण बीज शक्ति अथवा दैविक शक्ति है । शक्ति रहित शुद्ध (बीज युक्त) ब्रह्म जड़ जगत का उपादान कारण है । केवलाद्वैतवादी ही प्रलय काल में भी बीज का ही प्रादुर्भाव मानते हैं और फिर वही सृष्टि के रुप में परिणत होता है - ऐसा गौड्यादकारिका में कहा गया है ।
शंकराचार्य जगत के विवर्तरुप में मानते हैं । वल्लभाचार्य इसे सत् रुप में और परिणाम रुप में मानते है, जब कि दयानंद सरस्वती इसे जड़रुप मानते हैं ।
बौद्धदर्शनवादी कहते हैं कि प्रारंभ में कुछ भी नहीं था । सब कुछ शून्य था । निरंजन पुरुष नीर में था । धर्म निरंजन देव ने ब्रह्मासन में बैठकर योग में १४ युग निकाले .... तत्पश्चात् 'हाई' बोलने पर उलूक (उल्लू) हुआ । वे उलूक मुनि १४ युग तक भुखे रहे और तत्पश्चात् प्रभु के पास खाद्यपदार्थ की माँग की जिस पर प्रभु ने थूक दिया जिसमें से दो-चार छाँटे उलूक मुनि के मुख से बाहर गिर पड़े जो सागर बन गए । फिर उलूकमुनि एक पंख तोड़कर पानी में फेंकते है जिससे उलूक सृष्टि बनती है, हंस सृष्टि बनती है ..... फिर प्रभु ने कछुआ आदि बनाए – फिर प्रभु ने कान का कुंडल पानी में फेंका जो मेंढक बन गया – गौरी के गर्भ से ब्रह्मा - विष्णु तथा शिव का जन्म हुआ है - ऐसी ऐसी बातों का उल्लेख शून्य पुराण, धर्मपूजा विधान आदि में मिलता है । सृष्टि की बात ब्राह्मण सृष्टिवाद से मेल खाती है । औलुक्यदर्शन की ये बातें हैं ।
- नेपाल के बौद्धधर्मावलम्बी कहते हैं कि पूर्व में शून्य के सिवाय कुछ भी न था । जब स्वयंभू अकेले थे । उन आदि बुद्ध की इच्छा अनेक बनने की हुई और बुद्ध तथा प्रज्ञा के योग से प्रज्ञागाय, अथवा शिव-शक्ति अथवा ब्रह्मा, माया की रचना हुई । उसके बाद पाँच बुद्धों का जन्म हुआ | आदि बुद्ध ने उन पाँचो ही बुद्धों को सृष्टि की रचना करने का आदेश दिया - तब से अब तक ४ बुद्ध और ४ बुद्ध कल्प हो गए हैं । नेपाल के बौद्धों की ऐसी मान्यता है । संतानवादी बौद्ध शून्यवादक्षणिकवाद और संतान परम्परा में मान्यता रखते है।
___'विवर्तवादी' शांकरमत का कथन है कि - ‘अतात्त्विको अन्यथा विवर्त इति उदीरितः' । जो वस्तु सत रुप में न होने पर भी वैसी ही है - ऐसा लगता है इसे विवर्त कहते हैं । जिस प्रकार सर्प न हो और पता चले कि सर्प है तो उस भ्रम को
151