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________________ 1 - की उत्पत्ती का वर्णन है । अनेक प्रकार के भिन्न भिन्न छोटे छोटे मलों में अनेक प्रकार से भिन्न भिन्न बातें कही गई हैं । अक्षरवादी कहते हैं कि अक्षर से ही वायु, अग्नि, जल, और पृथ्वी अनुक्रम से हुए है । (त. प्रा. १६३) मधुकैटभ के शव से भी सृष्टि रचना का उल्लेख है । ( सतश्य) नारदपुराण में नारायण की दाहिनी भुजा से ब्रह्मा और बाँयी भुजा से विष्णु तथा मध्य से शिव के निकलने का उल्लेख है । भागवत् में कहा गया है कि विष्णु की नाभी में से एक कमल का फूल निकला। उस फूल में से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, और फिर उन ब्रह्माजी ने विश्व की उत्पत्ती की। मार्कण्डेय पुराण में भिन्न प्रकार का ही वर्णन है । उसमें बताया है कि महालक्ष्मी से विष्णु, महाकाली से महादेव, और महासरस्वती से ब्रह्मा उत्पन्न हुए हैं और फिर उन्होंने सृष्टि की रचना की है । इस प्रकार विविध प्रकार के पुराणों में भिन्न भिन्न अनेक प्रकार की मान्यताएँ बताई गई हैं । विविध दर्शनों में सृष्टि विवेचन - वैशेषिक दर्शन - वैशेषिक दर्शन के रचयिता आद्यपुरुष कणाद महर्षि का मत है कि तत्त्व से पूर्व कुछ भी नहीं । अणु ही अनादि है । अणु से ही पानी, ब्रह्मांड, विष्णु, नाभि कमल, और ब्रह्माजी उत्पन्न हुए है । इस प्रकार सृष्टि की रचना अणुपरमाणु से होती है - ऐसा वैशेषिक दर्शन का मत है । इसलिये वैशेषिक परमाणुवादी वह हैं । पतंजलि - पतंजल व्याकरण के रचयिता पतंजलि महर्षि का कथन है कि आत्मा और परमात्मा दोनों तत्त्व स्वतंत्र नहीं है । - सांख्य मत - सांख्य दर्शन के आदि पुरुष कपिल मुनि कहते हैं कि प्रकृति और पुरुष दो तत्त्व हैं, दोनों अनादि अनंत हैं और उन्हीं से सृष्टि प्रवाह चलता है । विश्व का कर्ता कोई नहीं है । वह प्रवाह से ही अनादि अनंत है । आत्मा अनेक है, प्रकृति एक है । (कई के मतानुसार प्रकृति भी अनेक हैं) अनुक्रम से प्रकृति, विकृति और विषाद वाले लघुता, उपाष्टंभ और गौरव धर्मवाले सत्वादि तीन गुण (सत्व, रज-तम) की साम्यावस्था प्रकृती कहलाती है । वह आदि- मध्य और अन्त विहीन है अनादि - अनंत है, अव्यय, अनवयव, साधारण और शब्द रुप, रस, गंध तथा स्पर्श से रहित है । प्रकृति को ही प्रधान अथवा अव्यक्त कहते हैं । प्रकृति से बुद्धि का जन्म होता है, बुद्धि से अहंकार पैदा होता है और फिर अहंकार से शब्द, रुप I 149
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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