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मत्स्यपुराण के १० वे अध्याय में वर्णन है कि स्वयंभू वेश में अंग के पापी पुत्र राजा वेणू के कुचले जाते शरीर में से पृथु निकला । विष्णु को प्रसन्न करके वह राजा बना; परन्तु पृथ्वी को जलाने हेतु कमर कसी, तब पृथ्वी गाय का रुप लेकर भागी, और पृथु उसके पिछे दौड़ा । तत्पश्चात पृथ्वी रुपी गाय खड़ी रही, और दुग्ध दोहन की अनुमति प्रदान की । अनुक्रम से भिन्न भिन्न लोग गाय का दोहन करते गए । उसी प्रकार भिन्न भिन्न वस्तुएँ उत्पन्न होती गई । विष्णूपुराण में थोड़े से अन्तर के साथ यही बात कही गई है कि भागती हुई गाय रुपी पृथ्वी को राजा पृथु धनुष मारने हेतु तैयार हुआ तब पृथ्वी रुपी गाय ने वचन माँगा और वह स्थिर हो गई जो पृथ्वी कहलाई।
कर्मपुराण सृष्टि के विषय में कहता है कि - प्रथम नारायण देव उत्पन्न हुए। उनसे ब्रह्मा हुए और ब्रह्मा से सनकादि पाँच मुनि हुए । उन पाँचों ही मुनियों को सृष्टि रचना करने की इच्छाविहीन देखकर ब्रह्मा माया से ईश्वर में मुग्ध हुए । फिर विष्णु के बोध से पुत्ररुप ब्रह्मा ने उग्र तप किया परन्तु तप की निष्फलता के कारण खेद तथा क्रोध होने से आँखो में से आँसू गिरे । उन आँसुओं से जमीन वक्र हो गई और उसमें से महादेव हुए । उन महादेव को ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने की अनुमति प्रदान की । उसने सृष्टि रचना में अनेक भूत-प्रेत-पिशाच उत्पन्न किये परन्तु उन्होंने अपनी उत्पत्ति के साथ ही जगत का भक्षण करना प्रारंभ कर दिया । यह गड़बड़ हुई देखकर ब्रह्मा को आश्चर्य हुआ और उन्होंने महादेव को कहा. - 'अलंप्रजाभिः ष्टाभिरी हशिभिः' बस । ऐसी उत्भूत् प्रजा से तो काम भी चौपट हो गया । अर्थात् ब्रह्मा ने सृष्टि रचना का कार्य बन्द करने का आदेश दिया । इस प्रकार ब्रह्मा ने शिव से सृष्टि बनवाई।
. रामायण में - अयोध्याकांड में दो प्रकार के वर्णन हैं । अरण्यकांड के २१ वे स्वर्ग में ब्राह्मण - क्षत्रिय - वैश्य और शूद्ध इन चार वर्णों की उत्पत्ति काश्यप की पत्नि मनु शतरुपा के चार अंगो में से होने का वर्णन है।
पृथ्वीसृष्टिखंड - के ३ रे अध्याय में श्लोक १०१ से १०४ तक वर्णन है कि ब्रह्मा के कपाल से अर्ध पुरुष रुप में, अर्ध नारी के रुप में शिवाजी पैदा हुए। उनसे विश्व रचना हुई।
मत्स्यपुराण में उल्लेख है कि विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न मधुकैटभ दैत्य के साथ विष्णु ने पाँच हजार वर्षों तक युद्ध किया था । इसमें ब्रह्मा से शिव
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