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________________ (३४) फिर उस मनु ने सृष्टि रचना करने की इच्छा से प्रेरित होकर अत्यन्त उग्र तपश्चर्या करके प्रथम १० प्रजापतिओं की रचना की जिनके नाम थे - मरीचि अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्थ, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु और नारद । (३६) इन दसों ने अन्य ७ मनुष्यों, देवताओं, उनके निवास स्थानों और महर्षिओं की उत्पत्ति की। (३७) फिर यक्ष, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, अप्सराओं, असुर, नाग, सर्प, गरुड, पितृगण. (३८) बिजली, वज्र बादल रोहित, इन्द्रधनुष, उल्का, निर्धात , धूमकेतु और अन्य अनेक प्रकार के तारागण, ध्रुव और अगस्त आदि. (३९) किन्नर, वानर अनेक प्रकार की मछलियों, पक्षी, पशु, मृग, सिंह, बाघ, आदि दोनों ओर अर्थात् ऊपर - निचे दाँत वाले पशुगण, (४०) कृमि, छोटे छोटे कीड़ो, कीट, पतंगो, जू, मक्खी, खटमल, सभी प्रकार के डाँस और मच्छरों तथा अनेक प्रकार के स्थावरों की उत्पत्ति की - . (४१) बीच में ब्रह्मा कहते हैं कि - इस प्रकार उन महात्मानों ने मेरे आदेस से तपोबल द्वारा स्थावर और जंगम सृष्टि की रचना उनके कर्मानुसार की। (५१) इस प्रकार अचिन्त्य सामर्थ्यवान् ब्रह्माने हमारी (मनु आदि की) तथा सभी स्थावर - जंगम जीवों की सृष्टि रचना करके पुनः प्रलयकाल में सृष्टि का विनाथ करके स्वयं में ही अंतर्धान हो गए । ___इस प्रकार मनुस्मृति ग्रंथ में स्वयं मनु भगवान प्रथम अध्याय के श्लोक क्रमांक ७ से ४१ तक स्वयं ही कहते हैं कि उन्होंने सृष्टि की रचना किस प्रकार की और ५१ वे श्लोक में ब्रह्मा के लीन हो जाने की बात आ गई । वर्णन तो आगे तक बहुत लम्बा है परन्तु सृष्टि रचना संबंधी कार्य का वर्णन इतना ही है। भगवद्गीता और मनुस्मृति नामक दोनों ही ग्रंथो में प्राप्त हिन्दू धर्म के मतानुसार सृष्टि रचना का वर्णन उपर्युक्तानुसार है । स्वयं पाठकगण पढ़कर विचार कर सकेंगे । इस प्रकार भिन्न भिन्न अनेक पुराणादि ग्रंथो में भी जो वर्णन उपलब्ध है, उस पर भी संक्षेप में मनन करें - पद्मपुराण में - उत्तरखंड के २९ वे अध्याय में कहा है कि - वेणू राजा के दाहिने हाथ को मलने लगे, उसमें पसीना हुआ, ब्राह्मण मलते ही जा रहे थे कि पृथु की उत्पत्ति हुई। . .. 147
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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