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________________ कल्पादौ विसृजाम्यहम्' अर्थात् कल्प कल्प मैं सर्जन करता हूँ और कल्प पूर्ण समाप्त होने पर मैं सृष्टि का विसर्जन अर्थात् प्रलय भी करता हूँ मै ही सब कुछ करता हूँ । - सृष्टि विषयक यह बहुत लंबी मान्यता है । अर्जुन को बताते हुए स्वयं श्री कृष्ण भगवान भगवद् गीता में इस प्रकार कहते हैं । मनुस्मृति में सृष्टि का वर्णन : मनुस्मृति को हिन्दु धर्म का महान् पवित्र धर्म ग्रंथ माना गया है श्री मनु के नाम से मर्नु स्मृति नाम रखा गया है । विविध विषयक वर्णनों में सृष्टि विषयक वर्णन भी इस में उपलब्ध है जो इस प्रकार है । मनुस्मृति ग्रंथ के प्रथम अध्याय के श्लोक नं ७ से सृष्टि रचना का वर्णन शुरु होता है । उसके श्लोक स्थान संकोच な के कारण यहाँ उद्धृत नहीं हैं मात्र भावार्थ ही लिखा जा रहा है जिसके आधार पर समझ लें (विशिष्टाभ्यास हेतु ग्रंथ में से श्लोक देख लें) ( श्लोक १-७) जो परमात्मा अतिन्द्रिय, सूक्ष्म रुप, अव्यक्त, नित्य और सभी प्राणिओं के आत्मा रूप हैं वे परमात्मा स्वयं प्रकट ( उत्पन्न ) हुए । (१-८) उन परमात्मा इच्छा की कि मैं सृष्टि उत्पन्न करूँ और फिर उस इच्छा से ध्यान करके सर्व प्रथम सृष्टि में पानी को उत्पन्न किया और उसमें शक्ति रुप बीज छोड़ा । (१-६) फिर वह हजारों सूर्य की भाँती प्रकाशवान शुद्ध सोने का अंडा बन गया । फिर उस अंडे में सभी लोकों की सृष्टि करने वाला ब्रह्मा उत्पन्न हुआ । (१-१२) ब्रह्माजी इस अंडे में एक वर्ष तक रहे (३६० ब्रह्म दिन) और ध्यान करके इस अंडे को फोड़कर उसके दो टुकड़े किये । (१-१३) फिर उस अंडे के दो टुकड़ों में से एक से स्वर्ग और दूसरे से पृथ्वी की रचना की और बीच के भाग में आकाश आठ दिशाएँ और जलाशय समुद्र बनाया । (१-१४) ब्रह्मा ने स्वयं से सत्-असत् आत्मा वाले मन की सृष्टि की अर्थात् मन बनाया । उसके पूर्व अहंकार की वृत्ति उत्पन्न की । (१-१५) अहंकार से पूर्व आत्मोपकारक महत् की, और संपूर्ण सत्व, रज, तम से युक्त विषयों की और रूप- रसादि विषयों को ग्रहण करने वाली पाँच इंद्रियों की गुदा पाँच कर्मेद्रियों की, पाँच शब्द तन्मात्रादि की रचना की । (१-१६) पूर्व कथित अनंत शक्तिवाले उन ६ के सूक्ष्म अवयवों की तथा विकारों में मिलाकर सभी प्राणियों की रचना की - (१-१७) प्रकृती युक्त उन ब्रह्मा के शब्दादि पाँच तन्मात्राएँ और अहंकार ये ६ 145
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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