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________________ प्रकार ईश्वर के पूर्व भी कोई सृष्टि थी या नहीं ? अर्थात् सृष्टि की रचना ईश्वर के बाद की मानें या ईश्वर से पूर्व की माने ? यदि पूर्व मे कुछ था तो वह क्या था? किस स्वरुप में था? यदि पृथ्वी - पानी - अग्नि - वायु, आकाशादि ईश्वर के पहले भी अस्तित्व में थे ऐसा पक्ष स्वीकार करते हो, तो फिर ईश्वर ने क्या बनाया? ईश्वर के हिस्से में बनाने का क्या रहा ? और यदि ईश्वर से पूर्व सब कुछ बना हुआ ही था तो वह किसने बनाया था ? तो क्या उसके लिये किसी अन्य ईश्वर की कल्पना या व्यवस्था की जाए ? या फिर एक ही ईश्वर को मानें ? एक ईश्वर की बात गले नहीं उतरती । अतः अनेक ईश्वर माने जाएँ । यदि अनेक ईश्वर मानते हैं तो किस संख्या पर जाकर रुकें ? इस प्रकार ईश्वर की संख्या कितनी होगी ? सृष्टि विषयक ईश्वर संबंधी प्रश्न : काल की दृष्टि से विचारणा करें तो भी सैंकड़ो प्रश्न खड़े होंगे । ईश्वर ने काल बनाया या फिर ईश्वर के पहले भी काल था क्या ? था तो काल क्या था ? किसने बनाया था ? पृथ्वी - पर्वत आदि के लिये तो पत्थर लेकर पृथ्वी आदि बनाए हों उसी प्रकार काल को किस कच्चे माल से बनाया था ? काल कितना गिनें ? सृष्टि हुए कितना काल बीता ? और ईश्वर को हुए कितना काल हुआ? इन दोनों में समान संख्या वाले वर्षों का ही उत्तर आएगा या फिर विशेष संख्या के वर्ष आएँगे? अर्थात ईश्वर और सृष्टि के बीच अंतर कितना गिनें ? और यदि अंतर काल आता है तो कितने वर्षों का आता है ? और इतने अंतर काल के वर्षों में ईश्वर क्या करता था? जब सृष्टि निर्माण न करता था तो फिर क्या करता था ? सृष्टि बनाने के लिये ईश्वर या फिर ईश्वर के सिर सृष्टि को यश दिया ? क्या ऐसी सृष्टि बनाने से ईश्वर का यश बढ़ा ? मान बढ़ा ? प्रशंसा सभी के मुख से सर्वानुमति से हो रही है या हजारो लाखों दुःखी लोग ईश्वर को गालियाँ भी देनेवाले है । गालियाँ क्यों देते होंगे ? क्या सृष्टि का निर्माण करना आवश्यक था ? या न भी किया होता तो चलता ? क्या सृष्टि बनाने से ईश्वर को यश प्राप्ती हुई ? क्या सृष्टि की रचना करके ईश्वर को प्रसन्नता हुई ? या फिर उसे अपनी कृति पर पछताना पड़ा ? दोनों में से क्या हुआ ? क्या यह सृष्टि बराबर है या इस में कुछ भूलें रह गई है ? क्या जल्दबाजी में कुछ उल्टा सीधा हो गया है ? क्या माना जाए ? यदि मानते हैं कि ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि में कुछ न्यूनता रह गई है तो ईश्वर के कौशल - अनुभव 138
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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