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शंकाओं का समाधान हो सकता है । इस प्रकार जैसी सृष्टि वैसे ही ईश्वर । सृष्टि की कल्पना के आधार पर ईश्र की कल्पना करने गए । इसमें हुए ऐसा कि सृष्टि तो सत् पदार्थ विद्यमान थी और है जब कि उसके आधार पर हुई कल्पना के अनुसार ईश्वर कल्पनाओं में उतरता भी है या नहीं ऐसा भी विचार नहीं आया और ईश्वर का ही रुप स्वरुप ऐसा हो गया कि वह ईश्वर ही काल्पनिक लगने लगा है । अब सृष्टि तो दूर रही, परन्तु ईश्वर-विषयक कल्पनाओं-विचारणाओं ने मानव को सत्य से लाखों कोस दूर ले जाने का कार्य किया और मानव ईश्वर के विषय में भी कल्पनाओं के घोड़े दौड़ाने लगा, अटकलें करने लगा।
ईश्वर के विषय में संभाव्य प्रश्न :
क्या ईश्वर है या नही? होगा या नही ? होगा तो कैसा होगा ? होगा तो कहाँ होगा ? कहाँ रहता होगा ? वह दिखता है या नहीं ? कब दिखता है ? उसका शरीर हो तो दिखाई दे या अशरीरी है ? यदि शरीर है तो कैसा है ? अपने जैसा है या फिर भूत-प्रेत-व्यंतर या देवता जैसा है ? वह दृश्य है या अदृश्य है? सशरीरी है या अशरीरी ? सशरीरी है तो हजार हाथवाला है या हजार मुँहवाला है ? नहीं - नहीं - इतनी बड़ी सृष्टि की रचना करनी है तो अवश्य ही हजार हाथवाला ही होगा । वरना इतनी विशाल सृष्टि कैसे बना सकता था ? तो फिर ईश्वर अकेला है या - किसी राजा जैसा राजसी ठाठ के वैभव में रहनेवाला है? उसके सेवक - कर्मचारी - अंगरक्षक - लश्कर आदि कितने होंगे इतनी बड़ी सृष्टि की रचना उसने अकेले ने स्वयं ही.की या श्रमिको को आदेश देकर उनसे करवाई? तब तो इतनी बड़ी सृष्टि की रचना करने के लिये कितनी बड़ी संख्या मे मजदूर लगाए होंगे ? तब ऐसा विशाल राजाशाही काफिला कहाँ रहता होगा ? राजा के रुप में ईश्वर होगा, तो उसका राज्य या राजदरवार आदि कुछ तो होगा ही न? क्या सब अदृश्य है या उसका अस्तित्व है ? नहीं - नहीं ऊपर आकाश में होगा क्या ? आकाश क्या है? आकाश कितना बड़ा होगा ? आकाश कब बनाया? पहले ईश्वर बना या पहले पृथ्वी - पानी - वायु - अग्नि - आकाश आदि बनाए? यदि प्रारंभ में कुछ भी न था और ईश्वर अकेला ही था तो फिर उस ईश्वर को किसने बनाया ? यदि उसका शरीर था तो फिर उसे जन्म देने वाले माता पिता थे या नहीं ? वे कौन थे ? ईश्वर के पिता भी ईश्वर के रुप में थे या सादे-सामान्य व्यक्ति थे ? तो वे कहाँ से आए थे? इस
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