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________________ ऐसा बनाया ? अथवा भूल से नमक अधिक गिर पड़ा और सब पानी खारा बन गया ? क्या उसे पानी तो मीठा ही बनाना था पर जल्दबाजीमें उससे खारा बन गया? तो फिर यह ऊपरवाला सभी प्रकार से सभी बातों में जानकार - होशियार सर्वज्ञ होगा या अल्पज्ञ होगा ? इतनी बड़ी विशाल सृष्टि बनाने की आवश्यकता क्या थी? क्यों बनाई क्या प्रायोजन था ? क्या किसी के कहने से उसने यह सृष्टि बनाई? क्या हुआ ? मानव मन की अटकलें रुकने वाली नहीं है । मानव कल्पना की उत्पत्ति - ईश्वर और सृष्टि : __ सृष्टि देखने के पश्चात् अटकलों और अविरत दौड़ते हुए कल्पना के घोड़ों को कहीं भी विश्राम न मिला तब अन्तिम विश्राम स्थल के रूप में उसने ईश्वर का घर ढूंढ़ लिया । हार मान कर ईश्वर को मानना पड़ा या मस्तिष्क पर बोझ मानकर . ईश्वर का आभार मानना पड़ा ? क्या हुआ ? मानव इस सैंकड़ो प्रश्नों के समाधान प्राप्त करने हेतु ईश्वर की सत्ता को ढूँढ़ निकालता है; परन्तु मकड़ी की भाँति स्व. निर्मित प्रश्न चिह्नों से भरी हुई इस सृष्टि के रहस्यों को ईश्वर के सिर मढ़ने गया वहाँ तो ईश्वर तत्व भी ऐसा गूढार्थ वाला ढूंढ़ निकाला कि उससे भी अधिक जटिल समस्या खड़ी हो गई । अभी तक तो मानव सृष्टि-विषयक ही अटकलें करता था.. परन्तु सृष्टि का कारण ढूढ़ना तो दूर रहा, परन्तु शोध में ईश्वर हाथ लगा और मानव मन ने कलना के घड़ो को विश्राम देने हेतु भी जहाँ ईश्वर को माना, वहीं ईश्वर विषयक अनेक कल्पनाएँ जागृत हो गई, सैंकड़ो ही नहीं बल्कि हजारों अटकलें शुरू हो गई। ईश्वर को माना तो ईश्वर का स्वरूप भी इतना धुंधला और संदिग्ध रहा कि ईश्वर का शुद्ध सच्चा स्वरूप किसी के भी हाथ न लगा । प्रत्येक धर्म के व्यक्ति अपने अपने ढंग से ईश्वर के स्वरूप के विषय में दावा करते रहे, परन्तु उसमें भी संश्यास्पद ही रहे । ईश्वर को कैसा मानें ? इस बात का आधार सृष्टि पर रह गया । जैसी सृष्टि है, जैसी सृष्टि की रचा है इसी प्रकार ईश्वर को भी सृष्टि छोरवत् ही व्यापक और विराट मानना रहा ! सृष्टि अकल्प है । इस में एक नहीं, परन्तु अनंत वस्तुएँ हैं। अतः ईश्वर को भी अनंत स्वरूप मे मानना रहा । ईश्वर को अचिन्त्य शक्तिमान् सर्व शक्तिमान स्पन्न मानना ही रहा हजार हाथ वाला और इच्छा मात्र शक्ति सम्पन्न मानना ही पड़े - क्यों कि तभी सृष्टि की समस्या का समाधान हो सके, तभी सृष्टि विषयक 136
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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