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________________ 1 हो गया ? अथवा कितने वर्षों में यह बन पाई ? परन्तु इस समय को ही कैसे बनाया ? काल भी कोई वस्तु तो है ही ? इसे कब बनाया ? इतना ही नहीं, बल्कि घूमने फिरने के लिये किसी पर्वतीय स्थल पर गए हो और वहाँ से सृष्टि के सौन्दर्य को देखें तो भी ऐसा लगता है कि इतने सारे पर्वत, मीलों तक लंबी पर्वतमालाएँ, नदियाँ, झरने, वृक्ष, पौधे, पत्ते और कल्पनातीत विशाल शिलाएँ, चट्टाने, चोटियाँ, विस्तृत भूभाग, बड़े बड़े गहन वन, असंख्य वृक्ष फल फूल तथा पत्ते, विविध प्रकार के पशु-पक्षी नाना प्रकार के रंग-बिरंगे सुंदर पक्षीगण, पशुगण आदि सब कितनी अद्भुत यह जीव सृष्टि है ? माउन्ट आबू, महाबलेश्वर, माथेरान, सापुतारा, शिमला मसूरी, दार्जिलिंग और हिमालय के बद्री-केदार- अमरनाथ आदि के दृश्य देखते समय मानव मुख से उपरोक्त शब्द प्रस्फुटित हो जाता हैं । मानव आश्चर्यचकित हो जाता है । वह तो अहा - अहा बोल उठता है । एक बात तो निश्चित् रुप से स्पष्टतः समझ में आती है कि यह सब मानवनिर्मित तो कदापि नहीं है । किन्हीं भी परिस्थितियों में यह Man Made तो नहीं लगता है । मानव का सामर्थ्य नहीं कि वह इतनी लम्बी पर्वतश्रेणिं खड़ी कर सके। कदाचित मान भी लें कि हजारों - लाखों श्रमिकों को लगाकर इतनी जबरदस्त पर्वतमालाएँ खड़ी कर दी हों, परन्तु उनके लिये इतनी बड़ी बड़ी विशाल शिलाएँ कहाँ से लाई गई । ये किसने बनाए ? मानव ने ये कैसे बनाए ? कदाचित् यह भी मान ले कि पत्थर भी मानव ने ही बनाए हैं तो ये किस में से बनाए ? पत्थरों के लिए कच्चा माल कहाँ से लाए ? और कैसे बनाए ? इस प्रकार एक विचार में से अन्यविचार और विचारों की लम्बी श्रृंखला ही चलती रहेगी । पर्वतमालाओं को देखने पर कदाचित् मानव सृष्टि की ओर थोड़ी बहुत विचारणा ढलती भी लगे परन्तु जब आकाश - पृथ्वी और समुद्रोंकी ओर देखकर विचार करते हैं तब क्या लगता है ? इतना विशाल आकाश किसने बनाया ? कब बनाया ? कहीं भी आकांश का छोर तक नहीं दीखता है । अनन्त पृथ्वी को भी किसने और किसमें से बनाया ? और यह समुद्र ? इतना पानी और यह भी कितना गहरा होगा ? कितना लम्बा - चौड़ा है आदि हजारों विचार आने पर मस्तिष्क एक स्थल पर रुकता है कि यह सब किसने बनाया ? कब बनाया होगा ? बनाए हुए कितना समय हुआ ? बनाने में कितना समय लगा होगा ? कैसे मान लें कि यह सब मानव कृति है ? मानव सृष्टित यह सृष्टि हो यह संभव ही नहीं है । सम्पूर्ण दुनिया देखने पर अमेरिका, आफ्रिका, चीन, रुस, ग्रीस आदि सैंकडो देशों की और 134 - ....
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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