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के रचयिता के अर्थ में प्रायः होता है । अतः ये अर्थ जैन सिद्धान्त को स्वीकार्य न होने से इन शब्दों से भी दूर रहे और इन शब्दों से वाच्य जो भगवान और देव हैं उनसे भी दूर रहे | इस प्रकार जैन धर्म और जैन धर्मानुयायी जैनों ने अरिहंत को भगवान के स्वरुप में माना है ।
सृष्टिकर्ता के अर्थ में - ईश्वर :
जगत के अधिकांश धर्मों में ईश्वर या भगवान को सृष्टिकर्ता के रुप में माना गया है । जगतकर्ता ही ईश्वर हो सकता है और ईश्वर ही जगत की रचना कर सकता है । बस, इसके सिवाय अन्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती । ईश्वर के सिवाय जगत का कर्ता अन्य कोई संभव ही नही हो सकता और जगत की रचना ईश्वर के सिवाय संभव ही नही हो सकती । ऐसी उभय पक्षीय विचारणा रखने वाले धर्म जगत में अनेक हैं । उनकी ऐसी मान्यता है । अतः भगवान या ईश्वर कौन ? तो एक ही उत्तर है कि जो जगत का कर्ता है । इस संसार को बनाने या बसानेवाला ही ईश्वर है वही भगवान है । बस, उसे ही भगवान माना जाए । यही आराध्य और उपास्य तत्त्व है । ईश्वर के सिवाय सृष्टि की रचना संभव ही नहीं है क्यों कि ईश्वर के सिवाय अन्य कोई सर्वशक्तिमान अथवा समर्थ है ही नहीं, अतः सृष्टि की रचना भी अन्य किसी से संभव ही नहीं है । इसीलिये इसे ही एक मात्र ईश्वर माना जाता है । यदि दोनों को अलग अलग माने तो बाजी बिगड़ जाती है । जगत की रचना करने वाला ईश्वर अन्य और उपास्य ईश्वर कोई अन्य मानें तो दोनों में छोटे - बड़े कौन ? न्यूनाधिक शक्तिवाले कौन ? सर्व शक्तिमान् कौन? आदि अनेक भेद-प्रभेद अलग अलग ईश्वर मानने में हो जाते हैं । अतः सृष्टिकर्ता भी यही ईश्वर और उपास्य आराध्य देव भी यही ईश्वर है अलग अलग नही है - ऐसी उनकी मान्यता है ।
ईश्वर कतृत्ववादी धर्म :
जगत के अधिकांश धर्म ईश्वर को जगत के कर्ता के रुप में मानते हैं, सृष्टि के रचयिता के रुप में मानते हैं, अर्थात् वे धर्म अपने अपने भगवान को जगत् कर्ता ईश्वर के अर्थ में स्वीकार करते हैं ।
१) हिन्दू धर्म में ईश्वर को जगत का कर्ता माना गया है । २) ईसाई धर्म में The Almighty is God the Supreme Power
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