________________
गणितीय चमत्कारों की सैकड़ों बातें मिलेंगी । इसका स्वतंत्र विषय के रुप में अलग से विचारणा अन्त में करेंगे, परन्तु यहाँ १४ का विषय अभिप्रेत है । नवकार महामंत्र में से ही शब्दाक्षरों की गणना करके १४ की संख्या निकाली गई है । जिस प्रकार पहले १४ पूर्वो की चर्चा हम प्रथम व्याख्यान में कर चुके हैं, उसी प्रकार यहाँ अन्य प्रकार से भी १४ की संख्या का विचार करें - (१) णमो (२) णमो (३) णमो (४) णमो (५) णमो (६) णमुक्कारो शब्द ६बार अक्षर २ + २ + २ + २ + २ + ४ = १४
__इस प्रकार नमस्कार महामंत्र में प्रथम पाँच पदों में ‘णमो' शब्द पाँच बार प्रयुक्त हुआ है और छठे पद में ‘णमुक्कारो' शब्द है जिसके ४ अक्षर है और ‘णमो' जो पाँच बार है उनके १० अक्षर है । इस प्रकार १०+४ = १४ संख्या सूचित है ।
यह १४ पूर्ववाची संख्या है, अतः ‘समरो मंत्र' के महिमा छंद में 'यह है चौदह पूर्व का सार' कहा गया है। नवकार को चौदह पूर्व का सार बताया गया है।
इसी प्रकार विचार करें तो नवकार के तीन पदों में 'सव्व' शब्द तीन बार प्रयुक्त हुआ है।
नमो लोए सव्व साहूणं - पाँचवे पद में 'सव्व' शब्द है । सव्व पावप्पणासणो - सातवे पद में 'सव्व' शब्द है ।
मंगलाणं च सव्वेसिं - आठवे पद में सव्व' शब्द प्रयुक्त हुआ है । इस प्रकार 'सव्व' शब्द को १४ की संख्या के साथ तीन बार जोड़कर अर्थ की विचारणा करें। सर्व १४ पूर्व । इस प्रकार सर्व को चौदह की संख्या के साथ जोड़ने पर उस संख्या वाच्य १४ पूर्वादि सभी ग्रहित होंगे । चौदह की संख्या तीन प्रकार से तीन अर्थ में मुख्य रुप से सूचित हुई है ।
१) १४ पूर्व २) १४ राजलोक ३) १४ गुणस्थानक
इस प्रकार नमस्कार महामंत्र को तीनों में सब प्रकार से संपूर्णतः घटाया जा सकता है । (१) १४ पूर्वो में सर्वत्र नवकार मंत्र है । चौदह पूर्वो का संपूर्ण सार यह नवकार मंत्र है । (२) १४ राजलोक में सर्वत्र नवकार महामंत्र है जिसकी विचारणा हम पूर्व में कर चुके हैं । (३) १४ गुणस्थानों में नवकार महामंत्र का भावात्मक स्वरुप है । इसे मंथन करके निकालना पड़ता है ।
जिस प्रकार नवकार को १४ पूर्व का सार कह सकते हैं, इसी प्रकार नवकार महामंत्र को १४ राजलोक का सार भी कह सकते हैं । १४ राजलोकरुप समस्त ब्रह्मांड
129