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________________ आदि से वापिस लुणावा भाग्यशालियों का आवागमन निरंतर चालु रहा। आखिर पर्युषण जैसे महापर्व की आराधना अपने वतन में करने हेतु सेंकडों परिवार लुणावा गांव में पधारे थे। घर-घर में तपश्चर्या का ताता लगा था। तपश्चर्या के माहौल ने घर-घर में अट्ठाइयां, नौं, ११, २१, क्षीर समुद्र आदि तपश्चर्याएं करवाई। संघ में मासक्षमण भी हुए। १४ स्वप्न दर्शन में भी कल्पनातीत उपज हुई। पूज्य पंन्यासजी श्री अरुण विजयजी म.सा. की प्रेरणा एवं सदुपदेश से पुना के कात्रज घाट की सुरम्य पर्वतमाला में ५० एकर की जमीन में जो “वीरालयम्” का विशाल विश्वस्तरीय प्रकल्प निर्माण हो रहा है। उसमें अस्पताल, धर्मशाला आदि की योजनाओं में श्रीसंघ के कई उदारमना महानुभावों ने अपनी लक्ष्मी का सद्व्यय करने का लाभ लिया है। पू. मुनिश्री हेमन्त विजयजी म. ने लाटारा जैन संघ में पर्युषण महापर्व की आराधना काफी धामधूम से करवाई थी। काफी अच्छी तपश्चर्या हई थी। ____ चोसठ प्रहरी पौषध के आराधक भाई-बहनें काफी बड़ी संख्या में रहे। संवत्सरी की आराधनार्थ अधिकांश लोग लुणावा पधारे थे। विशाल उपाश्रय भी छोटा पड़ने लगा। बहुत ही अनूठे आनन्दोल्लास से श्रीसंघ में संवत्सरी की आराधना हुई। संवत्सरी प्रतिक्रमण पूज्यश्री ने जिस तरह शान्ति से समझाते हुए कराया वह तो सचमुच इतिहास बन गया। कई छोटे-बड़े भाग्यशालियों ने जीवन में ऐसा प्रतिक्रमण प्रथम बार करने का एहसास कीया। रथयात्रा एवं तपस्वीयों का सन्मान - महापर्व की पूर्णाहुति पर श्रीसंघ का विशाल वरघोडा लुणावा की गलीयों में निकला। जैन-अजैन सेंकडों भाविकों ने दर्शन करके अनुमोदना की। गजराज एवं अश्वों पर आरुढ होकर भक्तों ने शासन शोभा में अभिवृद्धि की। स्वामीवात्सल्य और पारणे हुए। श्री महावीर युवक मण्डल ने समस्त तपस्वीयों की विशिष्ट अनुमोदना एवं सन्मान समारोह आयोजित किया था। चांदी के उपकरणों एवं रोकड रकम तथा अन्य उपकरणों से संघ के समस्त तपस्वीयों का काफी सुशोभनीय सन्मान किया था। पू. साध्वीजी महाराजों की पधरामणी - श्री लुणावा संघ में श्राविका वर्ग में आराधना कराने हेतु श्रीसंघ की विनंति से प. पू. अरिहंतसिद्ध सूरि म.सा. के समुदाय की पू. दिव्यप्रभाश्रीजी म. पू. सा. श्री ........ आदि साध्वी समुदाय पधारे थे। उन्होंने भी काफी आराधना की और करवाई। धीरज-कल्पेश की आराधना - मूल सीरोडी के वतनी और बैंगलोर निवासी श्रेष्ठीवर्य श्रीमान शा. सागरमलजी बाबुलालजी के सुपुत्र धीरजकुमार एवं कल्पेशकुमार ये दोनों बालकुमार जो कि पूज्य पंन्यासजी म.सा. के साथ ही हमारे श्री लुणावा संघ में पधारे थे। पूज्यश्री के साथ ही चातुर्मास किया। शिक्षा प्राप्त करने स्कूल में भी जाते रहे और शिक्षक के पास भी पढ़ते रहते थे। नित्य प्रभु पूजा-भक्ति, नवकारशी, सामायिक-प्रतिक्रमण, धार्मिक अभ्यास आदि करते रहते थे। पर्व तिथि के शुभ दिन पौषध आदि करते थे। पर्युषण में चौसठ प्रहरी पौषध एकासणों के साथ किये। कार्तिक चौमासी को पौषध करके कार्तिकी. पूर्णिमा की यात्रार्थ पैदल भद्रंकर नगर-सेसली पधारे दोपहर को धीरज को बुखार चढा। रात को अस्पताल में लेकर गए। आयुष्य की समाप्ति करके धीरजकुमार ने देवगति प्राप्त की। होनहार हो के ही रहता है। भाग्य दशा कर्माधीन है। ऐसे वैरागी बालकमार ने हमारी लणावा की धरती पर जो आराधना-अभ्यास किया वह सदा स्मति में बना ........... XIII
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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