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________________ श्री लुणावा जैन संघ में एक प्रशस्य चातुर्मास राजस्थान राज्य शूरवीर राजपुतानों की धरती रही है। मरू भूमि की इस धरा पर पाली जिले के गोडवाड प्रदेश में बाली तहसील में बीजापुर के समीप अरावली पर्वतमाला की उत्तरी उपत्यका में नदी किनारे १७०० वर्ष प्राचीनतम ऐतिहासिक श्री हथूण्डी तीर्थ बसा हुआ है। जैन श्रमण संघ के विद्वद्रत्न पू. पंन्यास प्रवर श्री अरुणविजयजी गणिवर्य म.सा. की प्रेरक प्रेरणा, सदुपदेश मार्गदर्शन एवं अथाग पुरुषार्थ से इस तीर्थ का अंतिम जीर्णोद्धार तथा सर्वांगीण विकास हुआ। श्री महावीर वाणी समवसरण मंदिर का भव्य नवनिर्माण हुआ। इस तीर्थ की शोभा में चार चांद लग गए। वि. सं. २०५२ की साल के माघ महीने की सप्तमी की शुभ तिथि के मुहूर्त में श्री हथूण्डी तीर्थ में भव्यतम प्रतिष्ठा हुई। भारतभर के अनेक संघों एवं भाग्यशाली महानुभावों ने काफी उत्साह और उल्लास से लाभ लिया। ___ हथूण्डी तीर्थ से सिर्फ १४-१५ की. मी. पर लुणावा गांव है। नदी के किनारे बसे हुए प्राचीन तीर्थ सेसली एवं अभिनव नागेश्वर पार्श्वनाथ युक्त श्री भद्रंकर नगर तीर्थ से सुशोभित श्री लुणावा गांव में चातुर्मास कराने हेतु पू. पंन्यास प्रवर श्री अरुणविजयजी गणिवर्य महाराज सा. को विनंति करने हमारा श्रीसंघ हथूण्डी तीर्थ गया। श्री लुणावा संघ,एवं महावीर युवक मण्डल के कार्यकर्ताओं ने काफी आग्रहपूर्ण विनंति की। पूज्यश्री का विहार पाली-नाकोडा-जोधपुर-कापरडा तीर्थ की तरफ हुआ। जोधपुर में पूज्यश्री की तरफ से हमें चातुर्मास की स्वीकृति मिली। श्रीसंघ ने जय बोली। अषाढ शुद में पूज्यश्री पंन्यासजी अरुण विजयजी म.सा., पू. मुनिश्री धनपाल विजयजी म., पू. मुनिश्री हेमन्त विजयजी म., पू. मुनिश्री कल्पेन्द्र विजयजी म. आदि मुनि मण्डल का आगमन लुणावा नगरी में हुआ। काफी उत्साह और आनन्द से श्रीसंघ ने एवं विशेषकर श्री महावीर युवक मण्डल ने पूज्यश्री का चातुर्मास प्रवेश करवाया। सिद्धचक्र महापूजन आदि पढाए गए। __ पू. पंन्यासजी भद्रंकर विजयजी म.सा. जैसे महान साधक महापुरुष की साधना की भूमि लणावा में प. पंन्यासजी श्री अरुण विजयजी म.सा. ने कछ दिन नवकार महामंत्र के तात्विक प्रवचन देकर स्मृति ताजी कराई। श्रीसंघ में चातुर्मासिक प्रवचनों हेतु आगम शास्त्र के चढावे हुए। पूज्यश्री नियमित आगमिक प्रवचन फरमाते थे। ऐसी तत्त्व वाणी श्रवणार्थ जैन-अजैन अनेक पुण्यात्मा पधारते थे। नवकार के ६८ उपवास की तपश्चर्या - नमस्कार महामंत्र के महान साधक पू. पंन्यासजी म.सा. की स्मृति में श्रीसंघ में पूज्यश्री ने श्री नमस्कार महामंत्र के ६८ एकांतरा उपवास की आराधना करवाई। पू. धनपाल विजयजी म. ने भी एकांतर ६८ उपवास से नवकार की आराधना की थी। अनेक बहनें एवं पुरुषों ने आराधना की। श्रेष्ठीवर्य श्रीमान शा. जयन्तिलालजी ने तपस्वीयों को बियासणा पारणा कराने का तथा श्रीसंघ की एवं महेमानों की साधर्मिक भक्ति कराने का लाभ पूरे चातुर्मास में लिया था। ३४ बियासणे सह ६८ उपवास की (एकांतरे) की आराधना सुखरूप पूर्ण हुई। अन्य छट्ट-अट्ठम एकासणे-आयंबिल आदि की आराधनाएं भी होती रही। श्री पर्युषण महापर्व की आराधना - लुणावा से अमदाबाद-बम्बई और वापिस बम्बई-अमदाबाद XIII
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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