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________________ के लिये क्रियात्मक पालन और उसके लिये पाँव उठते ही वंदनार्थ प्रभु के पास जाने की शुरुआत ही केवलज्ञान में निमित्त बनती है । अभी तो प्रभु के पास पहुँचे ही नहीं, अथवा गए नहीं । परन्तु 'कडेमाणे कडे' की जाने वाली क्रिया हो चुकी का भाव विचारें तो क्रियात्मकता ... सक्रियता का भाव भले ही इन्हें काया से समवसरण में न पहुँचाए, परन्तु मन से भाव से तो वहाँ पहुँचा ही दिया | मनोगत भाव मानसिक रुप से तो नमस्कार की क्रिया हो ही चुकी है तब ऐसा कहा जाता है यह सत्य ही है कि नमस्कार वंदन से और वैसे भाव से बाहुबली ने केवलज्ञान प्राप्त किया । अतः यह नमस्कार कितना उत्कृष्ट कोटि का था ? एक नमस्कार और उसका भाव भी कितना उत्कट ? हमें भी अपने समक्ष ऐसा ही उच्च आदर्श रखना है । मन के सामने भाव रखना है कि नमस्कार भी केवलज्ञानदाता है। एक भी नमस्कार निष्फल नहीं जाता : दो-चार बच्चे मिलकर किसी उद्यान में गए । वहाँ आम खाने की इच्छा होने से उन्होंने वृक्ष पर से आम गिराने का विचार किया । नीचे पड़े हुए पत्थरों में से एक-एक पत्थर लेकर वे आम्रवृक्ष पर फेंकने लगे । एक पत्थर दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवा... दसवाँ इस प्रकार करते करते सभी पत्थर फेंकते हैं, परन्तु आम नहीं गिरते । फिर भी वे प्रयत्न नहीं छोडते और पन्द्रहवाँ बाईसवाँ - पच्चीसवाँ पत्थर फेंका और अंत में सत्ताईसवाँ पत्थर ऐसा फेंका कि जाकर सीधा ही किसी आम को लगा और वह आम तुरन्त ही नीचे गिर पड़ा । इतने में एक सज्जन का उधर आगमन हुआ । वे बोले - मूर्ख ! तो प्रारम्भ में ही यह सत्ताईसवाँ पत्थर ही फेंक देना था न ? इतने अधिक अन्य पत्थर क्यों फेंके ? क्या मिला ? बच्चा कहता है पर मुझे प्रारंभ में ऐसा कहाँ पता था कि इस पत्थर से ही आम गिरेगा ? अतः मैं तो एक के बाद एक पत्थर फेंकता ही गया ! इस प्रसंग को ध्यान में रखकर हम विचार करें कि.. क्या उस बच्चे ने जो एक के बाद एक करके छब्बीस पत्थर फेंके वे सब निरर्थक थे ? नहीं एक भी पत्थर निरर्थक नहीं था । विचार करने पर स्पष्टतः पता चलेगा कि प्रथम पत्थर जब फेंका था तब वह बहुत जोर से फेंका गया था अतः आम से आगे बढ़ गया था । इस बात को समझ कर दूसरा पत्थर धीरे से फेंका तो वह बीच में ही गिर पड़ा अतः तीसरा फेंका तो वह दाहिनी ओर गिर पड़ा। तब चौथां फेंका पर वह ... 119
SR No.002485
Book TitleNamaskar Mahamantra Ka Anuprekshatmak Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Research Foundation
Publication Year1998
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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