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संसार के नर नारियों को वह इस संसार सागर से पार उतार दे, तो वह नमस्कार कैसा ? किसे किया हुआ वह नमस्कार ? ऐसे अनेक प्रश्न विचारणीय हो जाते हैं अतः कहा है कि जिनेश्वरों में सर्वोत्तम श्रेष्ठ श्री वर्धमान स्वामी भगवान को किया हुआ नमस्कार और वह भी एक ही नमस्कार यदि सबल सक्षम हो तो संसार के नर-नारियों को इस महासागर से तिराने के लिये पर्याप्त है । ऐसा एक नमस्कार करने वाला जीव भी तिर जाता है ।
समर्थ को किया हुआ, नमस्कार भी समर्थ :
'सिद्धाणं बुद्धाणं' सूत्र की इस तीसरी गाथा में स्पष्ट ध्वनि दोनों पक्षों में निकलती है - एक ओर तो वर्धमान स्वामी कैसे हैं ? तो कहते हैं कि जिनेश्वरों में वृषभ के समान सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ हैं । दूसरी ओर 'इक्को' शब्द प्रयुक्त हुआ है जिसका अर्थ है एका एक नमस्कार भी कैसा होना चाहिये ? हजारों में से एक वस्तु को चुनना हो तो हम कैसी सुन्दर और बढ़िया वस्तु चुनते हैं । इसी नियम के अनुसार यदि विचार करें तो स्पष्ट दिखाई देगा कि हमने माला फेरी जिसमें १०८ नवकार गिने और उनमें हमने १०८ बार नमस्कार किये । इस प्रकार १० माला फेरते हैं तो एक हजार नमस्कार करते हैं, परन्तु इन एक हजार नमस्कार में अच्छा, उच्चतम उत्तम कोटि का नमस्कार कौन सा ? ऐसा एक नमस्कार हम अलग छाँट सकते हैं या नहीं ? अथवा तो आज दिन तक ५०-६० वर्ष की आयु तक जितनी भी नवकार गिनी हैं, इन सब में से चयन करके कहना हो कि श्रेष्ठ उत्तम नवकार कौन सी गिनी गयी ? अथवा कौन सा नमस्कार शुद्ध भावपूर्वक का था इतनी सारी नवकार गीनी उन में कौन सी नवकार हमारी स्मरणशक्ति में याद रही उत्तर है कि उच्च भावयुक्त विशुद्ध नमस्कार अवश्य याद रह जाता है ।
बाहुबली महात्मा ने ऐसा वह कैसा एक नमस्कार किया था, जिससे उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हो गया ? ऐसा किस कोटि का उत्कृष्ट नमस्कार भाव आया था कि उनका पाँव उठते ही केवलज्ञान हो गया ? लेखक को स्पष्ट शब्दो में लिखना पड़ा कि 'पग उपाडयो रे वांदवा... उपज्युं केवलज्ञान'... वंदन करने के लिये जाने हेतु जैसे ही पाँव उठाते हैं कि वहीं उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है । नमन करने हेतु जाने नमस्कार करने के भाव आने के साथ ही उसे तुरन्त क्रियान्वित करने लगे नमस्कार का जैसा भावोल्लास जगा कि तुरन्त, ही नमस्कार करने
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