________________
एक नमस्कार भी तिरा सकता है :
एक नमस्कार भी कितना सक्षम और सबल है ? इसकी पुष्टि का प्रमाण “सिद्धाणं बुद्धाणं" सूत्र में आता है -
इक्को वि नमुक्कारो, जिणवर वसहस्स वद्धमाणस्स । संसार सागराओ, तारेई नरं व नारिं वा ॥ ३॥
जिनेश्वरों में भी सर्वोत्तम श्रेष्ठ श्री वर्धमान ( महावीर स्वामी) प्रभु को कृत एक भी नमस्कार नर-नारियों को संसार समुद्र से तिराने वाला होता है, संसार एक भयंकर समुद्र है ऐसे भयंकर संसार सागर से कैसे पार उतरना ? कैसे बचें ? धर्म के बिना भव सागर में से कैसे तिरा जाए ? तैरना कैसे संभव है ? जिस प्रकार जहाज के बिना समुद्र से पार उतरना संभव नहीं, उसी प्रकार धर्म के बिना संसार सागर भी कैसे पार किया जा सकता है ? इस भाव को शांतिसूरी महाराज जीव विचार में बताते हैं कि
एवं अणोरपारे, संसारे सायरंमि भीमंमि ।
पत्तो अणंतरवृत्तो, जीवेहीं अपत्तधम्मेहीं ||४४ ||
कष्ट उठाकर भी पार न किया जा सके ऐसे अपार भयंकर संसार रुपी समुद्र में से धर्म को नहीं प्राप्त किये हुए जीव तिर नहीं सके. परन्तु अनंत बार मृत्यु प्राप्त कर वे मरे ही हैं, अधिक से अधिक गहरे डूबे ही हैं । बात स्पष्ट है कि धर्म विहीन जीव चार गति रूपी कीचड़ से भरे हुए संसार रुपी समुद्र के गर्त में डूब जाते है, फँस जाते हैं, पर तैर कर पार नहीं उतर सकते है, यह बात . बिल्कुल सत्य हैं
नमस्कार धर्म हैं, नमस्कार करने वाला धर्मी है, और जिन्हें नमस्कार किया जाता है, वे नमस्करणीय, वंदनीय, पूजनीय, आदरणीय हैं । ऐसे नमस्कार धर्म के बिना जीव कैसे तिर पाएगा ? नमस्कार न पाया हुआ तो कदापि तिरने वाला ही नहीं है । पाया हुआ भी यदि नमस्कार का आचरण न करे तो वह भी तिरने में असमर्थ रहेगा । बात स्पष्ट ही है कि यह नमस्कार धर्म जो प्राप्त कर चुका है, जो भक्ति भावपूर्वक नमस्कार करता है वह नमन करने वाला जीव भले ही स्त्री हो अथवा पुरूष हो प्रत्येक नमस्कार धर्मी जीव संसार सागर से निश्चित् रुप से पार उतर जाता हैं और वह भी एक नमस्कार मात्र से ।
एक ही नमस्कार इतना प्रबल हो जाए, सक्षम और समर्थ बन जाए कि
117